गाजीपुर। आज से करीब चार- पांच दशक पूर्व यानि 1980 के दशक में ग्रामीण पत्रकार भी कुछ होते है, यह बहुत कम लोग ही जानते थे। ऐसे में आंचलिक ग्रामीण पत्रकारों को पहचान दिलाने की सबसे सशक्त पहल ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन ने ही किया। चार दशक की उतार चढ़ाव की यात्रा के बाद आज ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन न केवल उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा एवं प्रभावशाली संगठन बन कर उभरा। अपितु राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के साथ ही और विस्तारित होने की दिशा में अग्रसर है। हमारे ग्रापए का दिल्ली में राष्ट्रीय कार्यालय की स्थापना हो भी चुकी है। ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन की स्थापना 08 अगस्त 1982 को बलिया जनपद के एक छोटे से कस्बे गड़वार में शिक्षक व पत्रकार बाबू बालेश्वर लाल जी ने कुछ स्थानीय पत्रकार साथियों के साथ मिलकर की थी। आज यह संगठन पूरे प्रदेश में वटवृक्ष के रूप में फैल चुका है।अन्य दर्जनों प्रदेशों में भी गठन की प्रक्रिया जारी है। संस्थापक अध्यक्ष बाबू बालेश्वर लाल जी का जीवन परिचय- बाबू बालेश्वर लाल का जन्म बलिया जनपद के एक छोटे से गांव रतसर में 01 जनवरी 1930 को माता श्रीमती सुरति देवी और पिता चंद्रिका प्रसाद के परिवार में हुआ था। उस समय कौन जानता था कि यह बालक आगे चलकर ग्रामीण अंचल के पत्रकारों की सशक्त आवाज बनेगा। परिवार में आप से बड़ी दो बहनें एवं एक छोटी बहन थी। गाँव में ही प्रारम्भिक शिक्षा के बाद आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी से राजनीति शास्त्र में एम.ए. और महात्मा गॉंधी काशी विद्यापीठ से इतिहास में भी एम.ए. की डिग्री प्राप्त की। फिर 1952 में आप जंगली बाबा इंटर कालेज गड़वार ( बलिया) में प्रवक्ता बनकर शिक्षा के क्षेत्र में अपना योगदान दिया। पत्रकारिता के क्षेत्र में आप वाराणसी से प्रकाशित जनवार्ता और स्वतंत्र भारत समाचार पत्रों के साथ ही स्वतंत्र रूप से अनेकों पत्र- पत्रिकाओं से जुड़े रहें। आप का विवाह 1950 में गड़वार बलिया के जाने माने वरिष्ठ अधिवक्ता बालेश्वर प्रसाद की सुपुत्री चम्पा श्रीवास्तव से हुआ। पारिवारिक जीवन में आप के तीन पुत्रों में सौरभ कुमार, सुनील कुमार और सुजीत कुमार रहें। आप 27 मई 1987 को 57 वर्ष की आयु में अपने जीवन की अंतिम सांस ली। आप के असामयिक निधन से परिवार , समाज और विशेषकर ग्रापए की अपूरणीय क्षति हुई। संगठन के प्रति आपका समर्पण- करीब चार दशक पूर्व जिस दौर में आपने आंचलिक ग्रामीण पत्रकारों की पीड़ा महसूस करते हुए ग्रापए का पौधा रोपण किया था। उस समय आंचलिक ग्रामीण पत्रकारों की अपनी ना तो कोई पहचान थी और ना ही मान सम्मान। ग्रामीण पत्रकार हमेशा उपेक्षा के पात्र बने रहते थे। बाबू जी को ग्रामीण पत्रकारों की यह पीड़ा सदैव सालती रही। उस दौर में पत्रकारों के नाम पर एक- दो बड़े पत्रकार संगठन केवल शहरी पत्रकारों तक ही सीमित थे। उनका आंचलिक पत्रकारों से कोई लेना देना नहीं था। इस पीड़ा को देखते हुए आपने 08 अगस्त 1982 को ग्रामीण पत्रकार एसोसिएशन उत्तर प्रदेश की स्थापना करके प्रदेश भर में कस्बाई पत्रकारों को जोड़कर उनकी पहचान एवं स्वाभिमान की रक्षा करने का संकल्प लिया। आप अपने जीवन की अंतिम सांस तक पूरे समर्पण एवं मनोयोग से इसे पूरा करने में जुटे रहें। पोस्टकार्ड वाला संगठन- संगठन की स्थापना के दौर में आज की तरह संसाधन नहीं थे। संसाधनों के घोर अभाव के बीच कस्बाई पत्रकारों से संपर्क और संवाद करना आसान नहीं था। ऐसे में आपने अपनी दृढ़ संकल्पित इच्छा शक्ति से इसका समाधान निकाला और डाकघरों में मिलने वाले 15 पैसे के पोस्टकार्ड को अपना माध्यम बनाया और ग्रामीणांचल पत्रकारों से सम्पर्क स्थापित किया। मैं भी पोस्टकार्ड के माध्यम से ही आप के सानिध्य में आया।आप के बड़े पुत्र और निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष डा० सौरभ कुमार ने याद करते हुए बताते हैं कि बाबूजी प्रतिदिन गड़वार के चट्टी चौराहे पर स्थित चाय व पान की दुकानों पर आने वाले अखबारों को पढ़ते और छपे समाचार का कस्बाई क्षेत्रों की डेट लाइन नोट करते थे। फिर घर में जब भी समय मिलता था। पोस्टकार्ड लेकर उस डेट लाइन पर पत्र लिखने बैठ जाते थे। दर्जनों पोस्टकार्ड वह रोज लिखते और उस संवाददाता के समाचारपत्र का नाम तथा डेट लाइन का स्थान लिखकर डाकघर में पोस्ट कर देते थे। इसमें कुछ के वापसी जवाब आते थे। लेकिन अधिकांश के जबाब नहीं आने को अनदेखा कर देते थे। इन सबसे विचलित हुए बिना वर्षों तक उनकी दिनचर्या में यह कार्य शामिल रहा। लखनऊ में आयोजित हुआ पहला सम्मेलन- संगठन की स्थापना के बाद प्रदेश स्तर पर आंचलिक पत्रकारों का पहला दो दिवसीय बड़ा सम्मेलन 21-22 फरवरी 1987 को गंगा प्रसाद मेमोरियल हाल लखनऊ में आयोजित हुआ। जिसमें पूरे प्रदेश से 400 से अधिक पत्रकारों ने सहभागिता की। यहीं पर अधिकांश लोग पहली बार बाबू बालेश्वर लाल तथा ग्रापए के अन्य पदाधिकारियों से पत्रकार भाई रुबरु हुए। इस प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता बाबूजी ने की थी। यह अधिवेशन बाबूजी के जीवन का पहला और अंतिम अधिवेशन बन गया। जब सौरभ कुमार ने अध्यक्ष बनकर स्वीकार की चुनौती- 27 मई 1987 को बाबूजी के आकस्मिक निधन के बाद संगठन पर संकट के काले बादल मंडराने लगे थे। उस कठिन दौर में कोई प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व संभालने को तैयार नहीं था। तब तत्कालीन पदाधिकारियों ने बैठक कर अध्यक्ष पद का दायित्व उनके बडे़ पुत्र सौरभ कुमार जी को सौंपा। सौरभ जी ने उस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपने अन्य पदाधिकारी साथियों के साथ मिलकर रात दिन एक करके संगठन के लिए काम किया। इसी लगन के परिणामस्वरूप 1987 में ग्रापए रुपी नन्हा सा अंकुरित पौधा चार दशक में तमाम उतार- चढ़ाव के साथ अब प्रदेश में वटवृक्ष के रूप में अपनी मजबूत पकड़ बनाने में सफल रहा। अब राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के साथ विस्तारित होने की दिशा में अग्रसर है। वर्तमान में ग्रापए के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवीप्रसाद गुप्ता तथा प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ सिंह और निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष सौरभ कुमार अपने सहयोगी पदाधिकारियों और समर्पित साथियों के साथ मिलकर पूरे मनोयोग से संगठन हित में मजबूती देने में लगे हुए हैं। आज 27 मई 2025 को संस्थापक अध्यक्ष बाबूजी की 38वीं पुण्यतिथि पर पूरे प्रदेश के सभी जनपदों एवं तहसीलों के साथ साथ अन्य प्रदेशों में भी पूण्यतिथि कार्यक्रम आयोजित कर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा कर बाबूजी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करेगा। स्व० बाबूजी के बताये रास्ते पर चलकर संगठन को मजबूत करना ही हम सबकी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। बाबूजी जी को पूण्यतिथि पर मैं गाजीपुर इकाई के साथ शत-शत नमन करता हूं।
