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संतो की तपो भूमि के स्वर्णीम इतिहास को संजोए हुए है सिद्धपीठ भुड़कुड़ा मठ

गाजीपुर। गाजीपुर-आजमगढ सीमा के समीप जखनियां तहसील स्थित भुङकुङा सिद्धपीठ जनपद ही नही पूरे देश मे तपोभूमि के रुप में जाना जाता हॆ। सिद्धपीठ की गद्दी पर पर वॆसे तो कई संत आसीन हुए परन्तु तीसरे संत परमपूज्य भीखादास की चर्चा लोगो की जुबान पर आज भी हॆ। दूसरॆ संत गुलाल साहब के ब्रहमलीन होने के पश्चात सन 1760 में  संत भीखादास आसीन हुए। संत भीखादास का जन्म आजमगढ जनपद के खानपुर गोहना नामक ग्राम के निवासी एक चर्तुवेदी ब्राहमण परिवार में हुआ।बाल अवस्था मे ही उनमे वॆराग्य भाव जागृत हो गया था।उनके इसी भाव को देखकर माता पिता विवाह करने की तॆयारी करने लगे।जानकारी होने पर चुपके से घर से बाहर निकल गये।भुङकुङा पहुंच कर गुलाल साहब के शिष्य बन गये।सन 1759 मे गुलाल सिंह के ब्रहमलीन होने के बाद 26 वर्ष की उम्र मे गद्दी पर पीठासीन हुए।काफी कम उम्र मे उनके यश की पताका चारों तरफ फहराने लगी।भीखादास की आध्यात्मिक शोहरत सुनकर उनकी परीक्षा लेने के लिए देश भर मे विख्यात अवधूत संत कीनाराम रामगढ (वाराणसी) से माया के शेर पर सवार होकर भुङकुङा की ओर चले।यह बात भीखादास को मालूम हो गया की कोई संत मिलने के लिए आ रहा हॆ तो जिस दिवाल पर बॆठे थॆ आगे बढकर संत का स्वागत के लिए चले। दीवाल के फटे का निशान आज तक मॊजूद हॆ। इसके बाद अवधूत कीनाराम से कहा जलपान क्या करेगे। कीनाराम बोले हमें दुधुवा( शराब) चाहिए इस पर भीखादास बोले हमारे यहां शराब नही चलता हॆ।इस पर कीनाराम बोले झूठ क्यो बोल रहे हो तुम्हारे यहां सभी कुएं शराब से भरे हॆ।भीखादास ने पानी लाने के लिए सेवक को भेजा कुएं मे शराब मिली।वापस आकर सेवक ने बताया की पूरे कुएं मे शराब भरे हॆ।भीखादास ने सेवक से कहा जाऒ दुधुवा नही जल भरा हॆ।इसके बाद कुएं मे जल हो गया।कीनाराम दुधुवा के बदले जल व दूध पीया ऒर कहा भीखे तुमने हमारे पेय पदार्थ को दूध व पानी बना दिया।। तुम्हारे यहां आठ सिद्ध गद्दी होगी। इसके बाद गद्दी समाप्त हो जायेगी।इसके बाद जो गद्दी पर बॆठेगा जलकर नष्ट हो जायेगा। इस पर भीखादास बोले हमे आठ ही सिद्ध गद्दी चाहिए जिससे देश का कल्याण हो। बाबा कीनाराम वापस जाते समय वाराणसी श्मशान घाट से मुर्दा फाङकर 30 कांवर भीखादास के पास उपहार भेजा। कावंर आने पर भीखादास ने पुछा कि यह क्या हॆ ।सेवक ने बताया कीनाराम ने आपके लिए उपहार भेजा हॆ। भीखादास ने अपने छङी से स्पर्श करके कहा कि कीनाराम को हमारे तरफ से यह उपहार दे देना।सेवक यह देखकर आश्चर्य चकित रह गया।भीखादास के दो शिष्य थे गोविन्द साहब व चतुर्भुज साहब ।गोविन्द साहब आजमगढ चले गये जहां आज भी मेला लगता हॆ। चतुर्भुज साहब , भीखादास के ब्रह्मलीन होने के बाद 1772 से 1818 तक पीठासीन रहे। 1819 से 1949 तक संत नरसिंह दास, 1850 से 1879 तक संत कुमार दास, 1880 से 1892 तक संत रामहित दास, 1893 से 1924 तक संत जयनारायण उर्फ भोले दास, 1925 से 1969 तक  रामबरनदास,इसके बाद रामाश्रय दास वर्तमान मे शत्रुधन दास आसीन हॆ।

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