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दशरथ कैकेयी श्रीराम संवाद और विदाई मांगने के मंचन से भावविभोर हुए दर्शक

गाजीपुर। अति प्राचीन श्रीराम लीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में वन्दे वाणी विनाय कौ आदर्श श्रीराम लीला मण्डल द्वारा स्थानीय मुहल्ला हरिशंकरी, स्थित श्रीराम चबूतरा पर लीला के पांचवे दिन 14 अक्टूबर शनिवार को शाम 7 बजे से लीला के माध्यम से श्री महाराज दशरथ कैकेयी संवाद श्रीराम संवाद तथा विदायी मांगने से सम्बन्धित लीला का मंचन किया गया। लीला के दौरान दर्शाया गया कि जिस समय महाराज दशरथ दासियों के सूचना पाते ही संध्या के समय खुश होकर कैकेयी के महल में गये ऐसा मालूम हो रहा था कि साक्षात स्नेह ही शरीर धारण कर निष्ठुरता केे पास गया हो जब सुनते है कि महारानी कोप भवन में जाकर जमींन पर लेटी है तो वह कोप भवन का नाम सुनते ही सहम जाते है। उनका पैर आगे नही बढता है जैसे स्वंय देवराज इन्द्र जिनकी भुजाओ के बल पर बसते है और सम्पूर्ण राजा लोग जिनका रूख देखते रहते है वही राजा दशरथ अपने स्त्री का क्रोध सुनकर सहम गये, राजा डरते हुए अपनी पत्नी महारानी कैकेयी के पास जाकर उनके दशा को देखकर महाराज दशरथ दुखित होते है उन्होंने चारों ओर अपनी निगाहे दौड़ायी तो देखा कि सारे वस्त्राभूषण महारानी कैकेयी उतारकर कोप भवन के जमींन पर बिखेर दिया। वे महारानी के रूष्ट होने का कारण पूछते है कि बार-बार कह राउ सुमुखि सुलोचनि पिकवचनि कारण मोहि सुनाउ गजगामिनी निज काम कर। राजा दशरथ बार-बार कह रहे थे हे सुलोचनी अपने क्रोध का कारण बताओ, राजा दशरथ के बातों को सुनकर महारानी कैकेयी हंसती हुई सारे गहने कपड़ो को पहनकर राजा दशरथ से कहती है महाराज आपने देवासुर संग्राम में मुझे दो वरदान देने का वचन दिया था आज वह समय आ गया है, कैकेयी के बात को सुनकर महाराज दशरथ कैकेयी से तुरन्त कहतेे है कि हे सुमुखी तुम दो के बजाये चार वरदान मांग लो कहा गया हैं कि रघुकुल रीति सदा चली आयी, प्राण जाय पर वचन न जाय। इतना सुनकर महारानी ने कहा कि महाराज मुझे दो वरदान से ही मतलब है, पहला वरदान यह कि अयोध्या का राज हमारे पुत्र भरत को मिले तथा दूसरा वरदान में तापस वेश विशेखी उदासी 14 बरिस राम वनवासी, महाराज दूसरे वरदान में मैं आपसे मांगना चाहती हूँ कि आपके प्रिय पुत्र श्रीराम तपस्वी के भेष धारण कर 14 वर्ष के लिए वनवास जाने का वरदान चाहिए। इतना सुनते ही महाराज दशरथ मुर्छित होकर गिर जाते है उधर श्रीराम की सारे राज्याभिषेक की तैयारियां पूरी कर ली गयी। पूरे अयोध्याव के नर-नारी जुट गये उधर महाराज दशरथ को बुलाने के लिए कुल गुरू वशिष्ठ मंत्री सुमन्त को भेजते है जब मंत्री सुमन्त जी महारानी कैकेयी के कक्ष में पहुँचकर महाराज को मूर्छित पड़े देखा तो वे सहम गये और महारानी कैकेयी से महाराज के मूर्छा होने का कारण पूछते है महारानी कैकेयी ने मूर्छा होने कारण मंत्री सुमन्त को बता दिया इसके बाद मंत्री सुमन्त राजदरबार में पहुँचकर गुरू वशिष्ठ तथा श्रीराम को महाराज दशरथ के मूर्छित होने का समाचार बताते महाराज दशरथ के मूर्छित होेने का समाचार सुनकर कुलगुरू वशिष्ठ तथा श्रीराम माता कैकेयी के कक्ष में पहुँचते है और अपने पिता महाराज दशरथ के मूर्छित होने का कारण पुनः माता कैकेयी से पूछतेे है श्रीराम के प्रश्न का उत्तर देते हुए महारानी कैकेयी ने कहा हे राम देवासुर संग्राम में महाराज दशरथ के रथ का पिछला पहिया गड्ढे में धस गया था किसी तरह मैं उस रथ के पहिया को गड्ढा से मुक्त कर दिया था उसी समय आपके पिता जी महाराज दशरथ खुश हो करके हमें दो वरदान देने के लिए वचनबद्ध हुए। हमने कहा कि महाराज अभी रहने दीजिए, जब समय आयेगा तो मैं वह वरदान आपसे ले लूंगी। अब वह समय आ गया था कि मैंने दो वरदान में पहला वरदान अयोध्या का राज हमारे पुत्र भरत को देने की बात कही तथा दूसरे वरदान में तुम्हें तपस्वी का वेश धारण कर 14 वर्ष के लिए वनवाश मांगा इस बात को महाराज बरदास्त न कर सके और बेहोश होकर जमींन पर गिर पड़े। थोड़ी देर बाद श्रीराम मन में सोचकर वहाँ से माता कौशल्या के कक्ष में चल देते है वहाँ पहुँचकर माता कौशल्या से वन जाने की आज्ञा मांगकर पुनः अपने माता के कक्ष में पहुंचकर माता कैकेयी और अपने पिता, गुरू वशिष्ठ माता अरूनधती के चरणों में प्रणाम करते हुए पिता दशरथ से वन जाने के लिए आज्ञा मांगते है। महाराज दशरथ अपने पुत्र राम पुत्रवधू सीता  व लक्ष्मण को तपस्वी के भेष में देख करके हाये राम करते हुए पुनः जमींन पर गिर जातेहै। सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस प्रशासन की ओर से महिला पुलिस कर्मी तथा पुलिस की भारी संख्या में तैनाती की गयी थी। इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, उप प्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, कुश कुमार त्रिवेदी, मनोज तिवारी उर्फ मन्नू भइया, कृष्णा त्रिवेदी, श्रीराम सिंह यादव, ओमनारायन सैनी, ओमप्रकाश पाण्डेय, बालगोविन्द त्रिवेदी आदि रहे।

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