गाजीपुर। ज़मानियां नगर पालिका परिषद के मोहल्ला कुरैशी निवासी ताबिश अली ने एंटीआरसी के तत्वाधान में पिछले दिनों जूनियर नेशनल आचरी चैंपियनशिप गोवा के कम्प्लेक्स ग्राउंड कमपाल पणाजी में बीते 3 से 12 नवम्बर तक खेला गया। जिसमें उत्तर प्रदेश से 4 टीम तथा अन्य प्रांतों से 11 आचरी के धुरंदर खिलाड़ियों ने मैदान में अपने हुनर को दिखाया। इस दौरान ताबिश अली ने 50 मीटर की रेंज पर सटीक निशाना लगाया और गोल्ड मेडल हासिल किया। खिलाड़ी का मनोबल ऊंचा करने के लिये उपजिलाधिकारी भारत भार्गव, तहसीलदार लालजी विश्वकर्मा,क्षेत्राधिकारी विजय आनन्द शाही, कोतवाली प्रभारी वंदना सिंह को बुद्धिपूर मोहल्ला निवासी नेहाल खान के बंगले पर एक आयोजित कार्यक्रम में निसार वारिस खान के द्वारा अच्छे कार्यों को देखते हुए शांति एकता अंजुमन वारसी के तरफ से प्रतीक चिन्ह प्रदान की गई। इसके बाद चारों अधिकारीयों व दिलदारनगर पंचायत के चेयरमैन अविनाश जयसवाल के हांथो से जूनियर नेशनल आचरी चैंपियनशिप में ताबिश अली ने गोल्ड मेडल हासिल कर जनपद सहित नगर कस्बा व उसके आस पास के क्षेत्र का नाम सुनहरे अक्षरों में अंकित करने वाले को शील्ड देकर सम्मानित किया। बताया जा रहा है। कि इस गरीबी में भी ताबिश अली ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा और कड़ी मेहनत लगन के साथ आगे बढ़ता गया। निसार वारिस खान कहा कि ताबिश अली ने कई गोल्ड मेडल हासिल कर चुका है। बस सरकार ऐसे खिलाड़ियों के तरफ अपनी निगाह बनाए रखे तो देश प्रदेश का नाम उचाईयों पर पहुंचा सकते है। मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी ने कहा कि तीरंदाजी के क्षेत्र में तमाम युवकों का भविष्य बनते देखा है। अगर हुनरमंद युवक कड़ी मेहनत व लगन के साथ सटीक निशाना साधने लगे तो उनको आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता। इस अवसर पर सूफी संत हजरत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह पर रौशनी डालते हुए निसार वारिस खान ने बताया कि प्रकृति के कण-कण में अपने आराध्य का दीदार करने वाले सूफी संत हजरत सैय्यद हाजी वारिस अली शाह पैदाइशी वली थे। उनके संदेश लोगों के दिलों में ज्यादा हैं। उक्त की जानकारी नगर पालिका परिषद के पूर्व सभासद निसार वारिस खान ने दी। निसार वारिस खान ने कहा कि हाजी वारिस अली शाह का जन्म हजरत इमाम हुसैन की 26 वीं पीढ़ी में हुआ था। उनके पूर्वजों का ताल्लुक ईरान के निशापूर के सैय्यद वंश से था। सूफी संत के एक पूर्वज ने बाराबंकी के रसूलपुर कतूर में निवास किया। यहीं से एक बुजुर्ग अब्दुल अहद साहब देवा चले आए। यहां उनकी पांच पीढि़यां बीतीं और हजरत सैय्यद कुर्बान अली शाह के पुत्र के रूप में सरकार वारिस पाक ने जन्म लिया। सूफी संत की पैदाइश पहली रमजान को हुई थी। वे बचपन में मिट्ठन मियां के नाम से जाने जाते थे। जब वे तीन वर्ष के थे। तो वालिद सैय्यद कुर्बान अली शाह और कुछ दिन बाद उनकी वालिदा का भी मृत्यु हो गया। इसके बाद उनकी दादी साहिबा ने उनकी देखभाल की। उनकी देखभाल उनके चचा सैय्यद मुकर्रम अली करते थे। निसार वारिस खान ने यह भी बताया कि पांच वर्ष की आयु में सूफी संत जब मकतब (पाठशाला) पहुंचे। उन्होंने दो साल में ही कुरआन कंठस्थ कर ली। सात वर्ष की आयु में उनकी दादी का भी उनके सिर से साया उठ गया। इसके बाद उनके बहनोई हजरत हाजी खादिम अली शाह अपने साथ लखनऊ ले गए और वहीं पढ़ाई कराई। उन्ही के नाम पर शांति एकता अंजुमन वारसी कमेटी बनाई गई है। सरकारी पद रहते हुए जो अधिकारी अच्छे कार्य करते है। उनको शांति एकता अंजुमन वारसी के तरफ से सम्मानित किए जाते है। खान ने वारिस शाह पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पंद्रह वर्ष की उम्र में वारिस पाक ने हज का इरादा किया। अजमेर शरीफ उर्स में शिरकत करते हुए यात्रा शुरू कर दी और 17 बार हज किया। 12 वर्ष की यात्रा में उन्होंने अरब, ईरान, ईराक, मिस्त्र, तुर्की सहित कई यूरोपीय देशों की यात्रा की। सभी धर्मों के लोग उनके अनुयायी थे। उनके सूफी दर्शन के सन्देश लोगों को सौहार्द और मोहब्बत का सन्देश आज भी दे रहे हैं। 1 सफर 1323 हिजरी तदनुसार 6 अप्रैल 1905 को सुबह 4 बजकर 13 मिनट पर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने दुनिया से पर्दा कर लिया। उन्हें कस्बे में ही समाधि दी गई। उनके आस्ताना शरीफ पर आज भी देश -विदेश के लाखों जायरीन अपनी खिराजे अकीदत पेश करने आते हैं। इस अवसर पर तहसीलदार लालजी विश्वकर्मा, मौलाना तनवीर रजा सिद्दीकी, कमालुद्दीन अंसारी, नेहाल खान, गुलाम हाजी खान, पंचायत चेयरमैन अविनाश जयसवाल, मो0 असलम, निगार खान, सेराज खान आदि काफी संख्या में लोग उपस्थित रहे।
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