Breaking News
Home / ग़ाज़ीपुर / गाजीपुर: हरी खाद में ढैंचा के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता होगी कम – डॉ. नरेन्द्र प्रताप

गाजीपुर: हरी खाद में ढैंचा के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता होगी कम – डॉ. नरेन्द्र प्रताप

गाजीपुर। ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जिसका प्रयोग मुख्य रूप से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसे धान की खेती से लगभग 40 से 45 दिन पहले बोया और बाद में जुताई के समय खेत में मिला दिया जाता है। ढैंचा, धान की खेती को किस प्रकार से लाभ पहुँचाता है के बारे में जानकारी जनपद गाजीपुर के आंकुशपुर ग्राम में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र प्रताप द्वारा दिया गया; जो की आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के कार्यक्षेत्र में आता है | ढैंचा दलहनी फसल होने के कारण वायुमंडलीय नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर कर देती है। इससे मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है, साथ ही खेत में पलटने से उसमें जैविक पदार्थ (organic matter) की मात्रा बढ़ती है जिससे मिट्टी में पानी धारण करने की क्षमता और जल निकास व्यवस्था बेहतर होती है, जिससे धान की जड़ों का विकास अच्छे से होता है, इस प्रकार से ढैंचा मिट्टी का भौतिक गुण एवं संरचना में सुधार कर मिट्टी की उर्वरता में वृद्धि करता है जिस कारण से नाइट्रोजन की आवश्यकता का एक बड़ा भाग पूरा हो जाता है, जिससे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ढैंचा  की घनी बढ़वार के कारण खेत में अन्य खरपतवारों को बढ़ने का मौका नहीं मिलता, जिससे धान की खेती में कम खरपतवार होते हैं। कुछ शोध बताते हैं कि हरी खाद से कुछ रोगों और कीटों का प्रकोप भी कम होता है, जिससे धान की फसल अधिक सुरक्षित रहती है।ढैंचा की फसल से उक्त लाभकारी परिणाम प्राप्त करने हेतु बुवाई का आदर्श समय बीज की मात्रा एवं  मिट्टी में मिलाने का समय की जानकरी महत्वपूर्ण है | अप्रैल के अंतिम सप्ताह से जून के पहले सप्ताह तक ढैंचा की बुवाई का आदर्श समय (हरी खाद के रूप में) माना जाता है क्योंकि इस समय तापमान 25–35°C के बीच होता है, जो धैचा के अच्छे अंकुरण और बढ़वार के लिए अनुकूल है। हरी खाद के लिए प्रति 25-30 किग्रा बीज की आवश्यकता पड़ती है | बुवाई के लगभग 45–50 दिन बाद, जब पौधे 1.5–2 फीट ऊँचे हो जाएँ, तब उन्हें खेत में जुताई कर पलट देना चाहिए। इसके बाद खेत को 15–20 दिन तक सड़ने के लिए छोड़ देना चाहिए। इसके बाद धान की बुवाई या रोपाई की जाती है। इस प्रकार बुवाई के बाद 6–8 सप्ताह में यह फसल हरी खाद के रूप में खेत में पलटने योग्य हो जाती है ।

[smartslider3 slider="4"]

About admin

Check Also

विश्वनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मेसी में बी.फार्मा तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों द्वारा अंतिम वर्ष के छात्रों को स्मरणीय विदाई समारोह का आयोजन

गाज़ीपुर: विश्वनाथ इंस्टिट्यूट ऑफ फार्मेसी में बी.फार्मा तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों द्वारा अंतिम वर्ष के …