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गाजीपुर: खण्डित राष्‍ट्रीय चेतना को एक सूत्र में गांधी ने पिरोया- डॉ.श्रीकांत पांडेय

ग़ाज़ीपुर। अष्टभुजी कॉलोनी स्थित द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल के सभागार में “गांधी की प्रासंगिकता” विषय पर एक विचार संगोष्ठी का आयोजन हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता बलिया पीजी कॉलेज के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर शिवेश राय जी ने कहा कि गांधी को न समझने वाला मनुष्य की श्रेणी में ही नहीं हो सकता क्योंकि वह मानवता के अदम्य दस्तावेज हैं। विचार संगोष्ठी सत्र के अध्यक्ष डॉ0 श्रीकांत पाण्डेय ने कहा कि गांधी ने खण्डित राष्ट्रीय चेतना को एक सूत्र में पिरोया। गांधी हंस थे, जहाँ जो अच्छा मिल जाता था उसे चुन लेते थे। आधार वक्तव्य देते हुए डॉ0 महेश चन्द्र लाल ने कहा कि गांधी के अंदर जल्दबाजी नहीं थी। अतः वह सत्य के साथ प्रयोग कर सके। डॉ0 स्वाति श्रीवास्तव ने कहा कि १९१५ के पूर्व छिटपुट वर्ग आधारित या क्षेत्र विशेष में आन्दोलन होते थे, लेकिन गांधी ने राष्ट्रीय चेतना को आम जनमानस से जोड़ दिया। डॉ0 अम्बिका पाण्डेय ने कहा कि भारत विभाजन के असली दोषी ही आज गांधी पर विभाजन के लिए दोषारोपण करते हैं। रामनगीना कुशवाहा ने कहा कि महात्मा बुद्ध के बाद आम जन के लिए कष्ट सहने वाले दूसरा बड़ा नाम गांधी हैं। माधव कृष्ण ने कहा कि गांधी के पास घृणा नहीं थी, उनके पास केवल मिशन था। इसलिए वह अपनी लगातार आलोचना कर रहे लोगों जैसे बाबा अम्बेडकर या स्वामी सहजानंद के मिशन को अपना मिशन बना सके।काव्य सत्र की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी की कविता “गांधी सीने पर गोली कहा माँ-गोदी में सुख से सोये/ जन-जन की आँखों में आंसू धरती और अम्बर भी रोये” ने शहीदी दिवस पर प्रकाश डाला। कवि हरिशंकर पाण्डेय ने “प्रेम का रस उड़े जो ऐसा यहाँ प्रेममय हो जाए सारा जहां/प्रेम बिन जीवन काँटों का इक हार है प्रेम बिन सूने सारे त्यौहार है” सुनाकर गांधी के प्राणिमात्र के लिए प्रेम की ओर ध्यान खींचा। दिनेश चन्द्र शर्मा ने “अर्चना के लिए एक सुमन चाहिए, वन्दना के लिए एक नमन चाहिए/गीत अधरों पर सरक जायगी दर्द के लिए एक चुभन चाहिए” सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी। पूजा राय ने “मुझे भी पहली बार हठ में लिए/माँ ने देख लिया होगा/जन्म, जीवन, मृत्यु” सुनाकर गंभीर चिन्तन में डाल दिया। शालिनी श्रीवास्तव ने “सागरों ने बादलों को दान देकर पूछा है/यूं घुमड़ते फिरते हो पर सावनों में सूखा है” सुनाकर श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। रिम्पू सिंह ने अपनी कविता में स्त्रियों की समस्या पर लोगों का ध्यान खींचा,”स्त्री के सामने खड़ी होती है चौहद्दी/प्राचीर बन्धनों की जिसकी वो कैदी” माधव कृष्ण ने गांधी की तरह अपने आपको किसी भी बंधन से मुक्त करने का आह्वान करते हुए पढ़ा, “कहा किसने बन्धनों का दास हूँ मैं/शांत हूँ पर राम का वनवास हूँ मैं.”डॉ0 रामअवध कुशवाहा ने पढ़ा, “वे शब्द कहाँ से आते हैं जो कविता बन जाते हैं/ कहा आपने खाने में जो शब्द मिलाकर खाते हैं.” डॉ0 महेश चन्द्र लाल ने पहली बार कविता-पाठ करते हुए खूब वाहवाही लूटी, “आदिम अतीत में भी खाया था/ आदमी ने आदमी को पर/विवशता थी वह अस्तित्त्व में बने रहने के लिए” नवोदित युवा कवि मनोज सिंह यादव ने “मेरे रुदन को हंसी में बदलना/मेरे लिए खुद काँटों पर चलना/कहीं जिक्र जब इसकी की जाती है/ माँ तेरी याद बहुत आती है।” सुनाकर लोगों को भावुक कर दिया। कार्यक्रम में जान्हवी, प्रियंका, सुमित्रा, ममता, सुनीता, सच्चिदानंद, संभव, सौरभ, अंशू, सोनम, प्रियांजलि, ममता इत्यादि उपस्थित रहे।

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