गाजीपुर। जिला कृषि अधिकारी गाजीपुर ने बताया है कि डीएपी में 18 प्रतिशत नाइट्रोजन और 46 प्रतिशत फास्फोरस होता है। लेकिन 155 प्रतिशत नाइट्रोजन और 395 प्रतिशत फास्फोरस मिट्टी और पारी को मिलता है। शेष नाइट्रोजन व फास्फोरस मृदा में अघुलनशील अवस्था में व्यर्थ हो जाता है। यहीं व्यर्थ फोरस धीरे-धीरे मृदा को बंजर बना देता है। डीएपी के अधिक मात्रा मे प्रयोग से मृदा का पीएच भी बढ़ता है जिससे अन्य पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता में कमी आती है। डीएपी के घुलने से अमोनिया गैस का साव होता है जो नव अंकुरित बीज की जड़ों के विकास को धीमा कर देता है। डीएपी अन्य फास्फेटिक उर्वरक से महंगा है इसमें केवल नाइट्रोजन व फास्फोरस ही पाए जाते है। किसान भाई गेहूं बुवाई के समय दानेदार डीएपी की जगह नैनो डीएपी से बीज का उपचार करें। इससे फास्फोरस सीधे पौधों की जड़ों में उपलब्ध हो जाता है और उत्पादन में वृद्धि होती है। नेना डीएपी दानेदार डीएपी से सस्ता भी पड़ता है। किसान सब्जी. केला व अन्य फसल में डीएपी की जगह नैनो डीएपी एवं नैनो यूरिया का प्रयोग करें। रबी फसलों गेहूं, मसूर, सरसों, चना, मटर, लाही. आलू आदि में डीएपी के स्थान पर एनपीके जिंकेटेड व बोरोनेटेड सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग फसल की गुणवत्ता उपज व रोग प्रतिरोधक क्षमता की दृष्टि से कहीं अधिक उपयोगी है। एनपीके व सिंगल सुपर फास्फेट डीएपी से सस्ता पड़ता है जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है।
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