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मैं आदि हूं अनंत हूं विशेष हूं विशाल हूं

लाल बिहारी शर्मा “अनंत”

गाजीपुर। यह कविता बहुत गहन और अर्थपूर्ण है, जिसमें आत्म-साक्षात्कार और विश्व के विभिन्न पहलुओं को एक व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कवि लालबिहारी शर्मा “अनंत” ने विभिन्न उद्धरणों और भावनाओं के माध्यम से स्वयं को दर्शाया है, यह दिखाते हुए कि व्यक्ति अपने आप में अनंत और असीमित है तथा परमात्मा का अंश है। इस कविता में आत्मा की व्यापकता और उसके विभिन्न रूपों को सुंदर तरीके से व्यक्त किया गया है। कवि ने खुद को सभी तत्वों, स्थितियों, और भावनाओं का प्रतिनिधि बताते हुए, यह समझाया है कि इंसान में सब कुछ समाहित है – वह आदि है, अनंत है, धीर है, अधीर है, धर्म है, अधर्म है, और इसी तरह सभी स्थितियों और स्थितियों का एक स्वरूप है। यह रचना आत्म-जागरूकता और विश्व की जटिलताओं को समझने की दिशा में एक गहन चिंतन प्रस्तुत करती है।

मैं अनंत

मैं, आदि हूं अनंत हूं विशेष हूं विशाल हूं।

दृश्य  हूं  अदृश्य  हूं  सुरूप  हूं कराल हूं।

राम हूं  मैं  कृष्ण  हूं  महेश  हूं अशेष हूं।

खंड हूं अखंड  हूं मैं  निम्न हूं विशाल हूं।

धीर हूं अधीर हूं  लय भी  हूं प्रलय भी हूं,

अंबु हूं मैं अग्नि हूं आकाश हूं पाताल हूं।

द्युम्न हूं प्रद्युम्न  हूं  मैं  अंध  हूं  प्रकाश हूं।

काम  हूं निष्काम  हूं मैं, शैल हूं प्रवाल हूं।

हर्ष हूं विषाद हूं मैं जन्म हूं और मरण भी,

अर्थ हूं अनर्थ  हूं मैं खड्ग हूं और ढाल हूं।

धर्म हूं  अधर्म हूं  मैं  सृष्टि का  भी मर्म हूं,

गण्य हूं अगण्य हूं ,मैं शास्वत त्रिकाल हूं।

शस्त्र हूं मैं शास्त्र हूं ,मैं ज्ञेय हूं अज्ञेय भी,

मैं अनाथ नाथ हूं  मैं  मौन हूं  वाचाल हूं।

कर्म के प्राधान्य में मेरा अहर्निश वास है,

कर्म फल निर्देश देता मैं वही दिक्पाल हूं।

मैं  ‘अनंत’  ही  समग्र  विश्व का पर्याय हूं,

गीत हूं संगीत हूं  सारे  सुरों  की  ताल हूं।

 

 

 

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