गाजीपुर: शहर के अष्टभुजी कॉलोनी स्थित द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल के सभागार में तुलसीदास जी की जन्मजयंती के अवसर पर रचनाधर्मी संगोष्ठी का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ अर्थशास्त्री प्रोफेसर श्रीकांत पाण्डेय ने तुलसीदास जी के जीवन के कई प्रसंगों को उद्धृत करते हुए कहा कि तुलसीदास जी ने जिस समय काल में अपनी रचनाओं का लेखन किया उस समय में शैव और शाक्त के मध्य एक अलगाव था जिसे उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से खत्म करने का प्रयास किया हमें तुलसीदास जी के लेखन की समालोचना उनके देश-काल को देखते हुए करनी चाहिए।
कार्यक्रम की संयोजक पूजा राय ने कहा – तुलसीदास जी ने जिस समय काल में लिखा वो बहुत विषम था उन्होंने जो लिखा उसमें कुछ असहमतियां हैं हमारे पास असहमति की जगह हमेशा होनी चाहिए बस असहमति का तरीका स्वास्थ्य और संवादपूर्ण होना चहिए। उन्होंने काव्यपाठ करते हुए पढ़ा- मैं स्त्री/तुम आसमान लिखते हो/मैं मिट्टी पढ़ती हूँ/तुम जीवन हो जाते हो/मैं बन जाती हूँ नदी/तुम प्रेम करते हो और मैं अंततः/समा जाती हूँ धरती में/धरती पर ढूँढ़ोगे मेरा प्रतिबिंब तो मैं मिलूँगी /सुदूर किसी अरण्यक में विचरते /हवा, पानी, बारिश /मैं कुछ भी हो/सकती हूँ लेकिन /बात ये है कि/पहचान सकोगे मुझे?
वरिष्ठ कवि और छंदों के मर्मज्ञ कामेश्वर द्विवेदी ने काव्य पाठ करते हुए इन पंक्तियों से सबका मन मोह लिया,
कवयित्री प्रीतम जी ने काव्यपाठ करते हुए पढ़ा- मैं भीगी भीगी पलकों से कुछ ऐसी कहानी लिखती हूं/ जो मरकर भी अमर हुए / कुछ उनकी निशानी लिखती हूं।सेवानिवृत्त बैंककर्मी और ओज के कवि दिनेश चन्द्र शर्मा ने रचना पढ़ी कि, लहरोंं के थपेड़ो को किनारों से पूछो/ गमों के दौर को कलमकारों से पूछो/ कौन कहता है कि उजालों की दीवार नहीं खड़ी होगी/ भारतीय संस्कृति के कर्णधार तुलसीदास के विचारों से पूछो।साहित्यकार माधव कृष्ण ने कहा कि हम जिस धरातल पर खड़े हो कर किसी रचनाकार को परखते हैं वही महत्वपूर्ण है। हम उन्हें अपने शब्दकोष से जब परखते हैं तो हमारा व्यक्तिगत शब्दकोश हमें ब्लाइंड कर देता है जबकि तुलसीदास को समझने के लिए उनके स्तर पर उतरना होगा और पढ़ना होगा क्योंकि जब हम बार बार पाठ करते हैं तो वो रचना अपने को रिवील करती है जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम अपने आप को रिवील किया न्यूटन के सामने वैसे ही उनकी रचनाएं भी स्वयं को रिवील करती हैं। उन्होंने अपना काव्यपाठ करते हुए पढ़ा- युद्ध की जब बात हो तो यज्ञकी फिर बात मत कर/ बैरियों के रक्त को फिर घृत बना कर दैनिक हवन कर पलायन कबतक करेगा नहीं तेरा काल साथी एक पत्थर मार साथी कवयित्री शालिनी श्रीवास्तव जी ने पढ़ा, “वक्त की आँधी में /अनुबंध हो गए विस्मृत/ स्वार्थ के आड़ में /संबंध हो गए सीमित।वरिष्ठ साहित्यकार बिराज जी ने अपना गीत पढ़ा- गीत लिखूं संगीत लिखूं/ बोलो ऐ मन क्या लिख दूं मैं हार लिखूं कि जीत लिखूं।वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी जी ने तुलसीदास प्रशस्ति कविता का छांदस पाठ किया।कार्यक्रम का कुशल संचालन प्रसिद्ध व्यंग्य कवि विजय कुमार ‘मधुरेश’ जी ने किया. उन्होंने अपनी कवितायें भी पढ़ीं और हंसाते हुए गंभीर सन्देश दिया उन्होंने अपनी व्यंग्यात्मक कविता पढ़ते हुए कहा, “एक मिनिस्टर ने डांटा चपरासी को/ उसने कहा क्यूं डांटते हो सरकारी नौकर को/ अंशकालिक नौकरी पर इतना गुरूर टेम्पररी हो कर धमकाते हो परमानेंट को.” द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंध तंत्र ने सभी साहित्यकार विद्वानों और चिंतकों का धन्यवाद किया. सभी रचनाकार इस श्रृंखला में जुड़ने के लिए ७००७११५९७४ पर सन्देश भेज सकते हैं.