Breaking News
Home / ग़ाज़ीपुर / गाजीपुर की जश्न आजादी, वो खून से लिखी इबरत् है, गोपाल अहीर और सुखी अहीर के बगावत पर अंग्रेजों ने दी थी फांसी

गाजीपुर की जश्न आजादी, वो खून से लिखी इबरत् है, गोपाल अहीर और सुखी अहीर के बगावत पर अंग्रेजों ने दी थी फांसी

उबैदुर्रहमान सिद्दीकी

गाजीपुर की जश्न आजादी, वो खून से लिखी इबरत् है। गाजीपुर का कंपनी कमाण्डर विलियम हैरिस बनारस के कमीश्नर मिस्टर बेंजी को 12 जून 1939 को एक पत्र भेजता है जिसमे लिखा होता है : “ग़ाज़ीपुर के 13 थानों में से 11 थाने वीरान पड़े है, जिन्हे सेना छोड़ कर शहर में भाग आई है. वहां के अधिकारी भी शहर में आगए और् हर तरफ के यातायात के साधनों को नष्ट कर दिया गया है और दफ्तर के साथ पुलिस स्टेशन की सभी सरकारी सामग्रिया जला दी गईं हैं. आंदोलनकारी साधु फकीरों की वेशभूषा मे आते है. औड़िहार क्षेत्र से लेकर ताजपुर देहमा तक की रेलवे लाइनों तथा स्टेशनों को बरबाद किए जाने का प्रयास हो रहा है ताकि सेना को ले जाने और ले आने में बाधा हो. यही स्थिति गंगा के उस पार की बड़ी लाइन के स्टेशनों का हुआ है . रेल की पटरियां उखाड़ फेंकी गई है और रेले चलना बन्द होगयीं।” आगे हैरिस लिखता है, “सड़कें जगह जगह की खराब कर दी गईं है और छोटी छोटी पुलिया भी न बच पाई है जिससे हम सेना गांव में लेजाकर दबिश दे सके. पेड़ों को काट काटकर सड़कों का आवागमन बन्द करदिया गया। डाकखाने और तार के खम्बो को बेकाम कर दिया गया है. यह सभी काम जनता ने एक सप्ताह में करदिया। ” इस तरह की सैंकड़ों इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स फाइल्स लखनऊ स्थित स्टेट आर्काइव में रखी है. ऐसे ही हजारों दस्तावेजात रीजनल स्टेट आर्काइव इलाहाबाद तथा गाजीपुर के रिकॉर्ड रूम में है. उनमें अधिकतर खुफिया रिपोर्ट्स अप्रकाशित है. उनके अनुसार 1858 के आंदोलन के लिए जिला भर में 100 से ऊपर को अंग्रेजों ने गोली मार दी. पच्चासों को ऐसी जगहों पर गोली से घायल कर दिया गया कि वे बेकाम के होगये। हज़ारों व्यक्ति बन्दी बनाए गए और रास्तों में जो जो मिलता, उन्हे बेंतों और डंडों से मारा गया. सुहवल में कलक्टर के कैम्प के सामने श्यामसुंदर राय तथा कमलाकांत पाण्डे नामक दो युवकों को बंदी बनाकर जेल में डाल दिया गया. अपनी क्रूर तथा उज्जड़ करतूतों से मशहूर नेदर शोल , हार्डी, स्मिथ कंपनी के अफसर बलूची सेना के साथ निर्दयतापूर्वक जनता को पिटवाया, गाँव गाँव मे आग लगवाई, घर लुटवाये ,औरतों पर अत्याचार किए और कोई उन्हे संदिग्ध लगता ,तुरंत उन्हे गिरफ्तार कर के जेल में डाल देते. स्पेशल ट्रेन द्वारा कंपनी की सेना बनारस से ग़ाज़ीपुर के लिए जब चली तो उस ट्रैन को औड़िहार से पहले ही रुक जाना पड़ा. क्योंकि आंदोलनकारियों ने रेल का पुल के नीचे बने नाले को तोड़ दिया था ताकि सेना आगे न जा सके. कमांडर नेदरशेल वही रुक गया और पास के गांव रामपुर में घुसकर वशिष्ट नारायण सिंह की छावनी को जला दिया और वहां के मुखिया गौरीशंकर सिंह को बुरी तरह पीटा। बहुतो को तो फंटे बांस से पिटवाया। वहां के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलवाकर पुल की पहरेदारी को भेजा और रह रह कर गांव वासियों पर गोलियों की बौछार करता रहा.  जबतक पुल नही बन गया तबतक आसपास के गाँव लुटे और फूंके जाते रहे। जब नेदर शेल सैदपुर पहुंचा तो उसने वहां के तहसील मुख्यालय पर तिरंगा झंडे को लहराते हुए देखा, जिसे उसने तहसीलदार से उतरवाया और अपना जूता पोछते हुए कुडख़ाने पर झंडे को फेंक दिया। तहसील परिसर में आत्माराम पाण्डे को उसने इतना पिटवाया कि वह बेहोश होगये. नन्दगंज थाने पर हरप्रसाद सिंह पीटे गए। उन दिनों जनपद की तहसील के थानों में किस बर्बरता से आज़ादी के मतवाले पीटे जाते, मारे जाते और बेहोश होजाने पर उन्हे जेल में डाल दिये जाते, गाजीपुर कलेक्ट्रेट के दस्तारेज विभाग में अनेक अभिलेख बस्तों में बंद है. यह अधिकतर फारसी, उर्दू तथा इंग्लिश में है. सैदपुर के शिव प्रसाद द्वारा प्रकाशित साप्ताहिक उर्दू अखबार ” आईना तहजीब नुमा” के संवाददाता विक्रमादित्य सिंह को भी नेदर शोल ने खूब पिटाई की थी क्योंकि उन्होंने लगातार लिखा था. वह अखबार में लिखते है : औडि़हार से लेकर नंदगंज तक के रास्ते मे जितने भी गाँव मिले सभी की दशा बुरी हो रही थी. सरकारी कर्मचारी गाँव को लूट कर , वहां आग लगा देते. इससे तंग आकर गांव के लोग जगह जगह पल तोड़ देते और सड़कें खराब हालत में कर देते. जब सेना गांव में घुसती तो रास्ते मे सैनिकों ने उनसे उनका परिचय पत्र मांगते और इस तरह से वे देहाती इलाके में आगे बढ़े जाते. जब सेना सैदपुर पहुंची, तब नेदर शेल वहां था. वह अपनी मौजूदगी में गाँव को लुटवा रहा था और फुंकवा रहा था. लोगो को पेड़ों से बांधकर कोड़े लगवा रहा था। परिवार के लोगो के सामने खड़ा करके वे उनकी बहू बेटियों की बेइज़्ज़ती करवाता। ” आईना तहजीब नुमा अखबार का रिपोर्टर आगे लिखता है कि इतने में उसने मुझे पकड़ कर बुलाया और जब अपना परिचयपत्र दिखाया तो नेदर शेल बिगड़ कर बोला : ” ओफ़, तुम उस वाहियात पत्र में काम करता है, जिसका सम्पादक ब्लडी शिव प्रसाद है, तुम्हे हरगिज़ नही छोड़ा जासकता है।” आगे वह लिखते हैं, “उसने मेरी पिटाई कराई और बेहोश होने पर मुझे जेल में डलवा दिया. होश आने पर मैने देखा कि मेरे पास वाले हवालात में एक साहब पीने के लिए पानी मांग रहे थे , एक देसी सैनिक ने उन्हें एक कुल्हड़ मे पेशाब भर कर पीने को दिया”. गाजीपुर से संबंधित अधिकतर दस्तावेज को पढ़ना बड़ा मुश्किल है क्यूँकि इनमे गांव के जो नाम लिखें हुए है उन्हें अंग्रेज अधिकारियों ने अपने उच्चारण के अनुसार लिखने के कारण कुछ का कुछ पढ़ने में आता है, जैसे 1857 के एक दस्तावेज मे स्थान ” सुवेल ” क्रांतिकारी नाम “कनु शकराय ” है. चूंकि उर्दू भाषा की मुझे अच्छी जानकारी है, इसलिए निवासी सोहवल तथा नाम किशन राय है. उन्हे इस आरोप मे 1857 मे गिरफ्तार किया गया कि इन्होने आंदोलनकारियो को असलहा खरीदने के लिए ब्रिटिश सेना के विरुद्ध पैसे दिए थे. उन्हें पकड़ लिया गया और मुकदमा चला कर 1859 मे फाँसी दे दी गई थी. देखा जाए तो जनपद के आंदोलन में समाज के उच्चवर्ग की भागीदारी को बड़ी शान शौकत के साथ प्रकाशित किया गया है लेकिन समाज के निचले तबके के योगदान को दरकिनार किया गया? जबकि जनपद के निचले तबके ने भी 1857,1858 तथा 1859 के म्यूटनी बस्ते कंधे से कन्धा मिलाकर जंग – आजादी मे भाग लिया था, जैसे : “मुंडा नाम , पेशा नाई, निवासी गाजीपुर शहर , आरोप यह लगा कि इसने विद्रोहियों का 1857 मे साथ दिया था तथा जगह जगह कम्पनी की सेना से मोर्चा लिया . इसपर गिरफ्तार हुआ तथा 1859 मे फाँसी दे दी गई ” “शीयू गोलन ( गोपाल ) जाति अहीर , निवासी शहर गाजीपुर , जिसने 1857 के उपद्रव मे कम्पनी की सेना के विरोध जगह जगह आंदोलकारियों का साथ दिए था, इसी आरोप मे गिरफ्तार किया गया तथा विद्रोह मे 1859 को फाँसी पर चढ़ा दिए गया ” “सूखुन् अहीर ( सुखी अहीर ) ने आंदोलनकारियों का साथ दिया और गाजीपुर मे अलग अलग स्थानों पर जहाँ जहाँ सरकार का कब्ज़ा था ,उसे आजाद कराने के लिए लड़े जिसपर उन्हें गिरफ्तार किया गया था उन्हें 1859 मे फाँसी दी गई। ” नजीब जुलाहा निवासी गुड़िया गाजीपुर जो जगह जगह विद्रोहियों के साथ 1857 मे कम्पनी सेना के विरुद्ध मोर्चा लिया था . उसपर यह आरोप लगा कि उसने ब्रिटिश कार्यालयों तथा उनके कारखानों को लूटने हेतु पैसे से सहायता की थी. इस बाबत सेना ने गिरफ्तार करके मुकदमा चलाया तथा फाँसी हुई”

 

 

[smartslider3 slider="4"]

About admin

Check Also

गाजीपुर: सरकारी धान क्रय केंद्रो पर धान बेंचे किसान, मिलेगा उचित मूल्‍य-जिलाधिकारी

गाजीपुर। क्राप कटिंग प्रयोग के आधार पर जनपद  में फसलों की औसत उपज और उत्पादन …