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लालसा इंटरनेशनल स्कूदल रायपुर: अनेकता में एकता की पहचान है हमारी भारतीय संस्कृति

गाजीपुर। विद्यार्थियों के बहुमुखी विकास एवं व्यक्तिव निर्माण हेतु रायपुर, गाजीपुर में स्थित लालसा इंटरनेटस्कूल स्कूल में सीबीएसई, नई दिल्ली के तत्वाधान मे साप्ताहिक पखवाड़े के अंतर्गत शिक्षा सप्ताह के उत्सव कार्यक्रम में आज साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन किया गया। छात्र-छात्राएँ अपनी अभिरूचि के अनुसार विभिन्न गतिविधियों में अपनी सहभागिता दर्ज किए। साहित्यिक गतिविधि के अंतर्गत निबंध, वाद-विवाद, भाषण , तात्कालिक भाषण , प्रश्नमंच इत्यादि प्रतियोगिता आयोजित किया गया। सांस्कृतिक गतिविधि के अंतर्गत स्कूल सभागार में नृत्य (एकल एवं समूह) गायन (एकल एवं समूह) चित्रकला, रंगोली, मेहंदी, सलाद सज्जा, पुष्प सज्जा, थाली सजावट इत्यादि प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। इस अवसर पर लालसा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन/प्रबंध निर्देशक अजय कुमार यादव ने बताया कि अनेकता में एकता ही हमारी पहचान है। हमारा भारत पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। एकता शब्द स्वयं यह प्रकट करता है कि भारत में जाति, रंग, रूप, वेशभूषा अलग होने के बावजूद भी यह एक सूत्र में बंधा है। जिस प्रकार अनेक वाद्य यंत्र मिलकर संगीत की एक लय, एक गति एक लक्ष्य और एक भाव बना देते हैं और मनमोहक संगीत का जन्म होता है। भारत में भी विभिन्न जातियां, धर्म, भाषाएं, बोलियां एवं वेशभूषा हैं, फिर भी हम सब एक हैं। भारत की एकता आज से नहीं बल्कि प्राचीनकाल से प्रसिद्ध है। समय-समय पर विभिन्न ताकतों ने इस एकता को खंडित करने के प्रयास किए हैं, परंतु उन्हें भी हमारी एकता के सामने शीश झुकाकर नमन करना पड़ा। कार्यक्रम के अंत में स्कूल के प्रधानाचार्य महेश कुमार मिश्रा ने कहा कि मनुष्य समाज का एक भावनात्मक प्राणी है और अंतर्मन की भावनाओं के कारण ही वह समाज के अन्य प्राणियों से जुड़ा होता है। प्राय: किसी जाति, समुदाय व राष्ट्र के व्यक्तियों के बीच जब भावात्मक एकता समाप्त होने लगती है तो सामाजिक अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और सारे बंधन शिथिल पड़ने लगते हैं। जिस प्रकार एक परिवार एकता के अभाव में बिखर जाता है, उसी प्रकार सामाजिक एकता व समरसता के बिना धरा निष्प्राण सी दिखती है। सामाजिक एकता समरसता पूर्ण सृष्टि का एक मजबूत स्तंभ है। आज हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा औी बेरोजगारी है। देश की प्रगति के लिए हम सबको मिलकर इन चुनौतियों का समाधान करना चाहिए। परन्तु कुछ असामाजिक तत्व छोटी-छोटी बातों को लेकर आपसी भाई-चारे में दरार डालने का काम करते हैं। इन लोगों के मनसूबों को जानकर हमें उनका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए और समरसता को बनाए रखना चाहिए। हमारी पुरातन संस्कृति में कभी भी किसी के साथ किसी भी तरह के भेदभाव को स्वीकार नहीं किया गया। हमारे वेदों में भी जाति व वर्ण के आधार पर किसी प्रकार के भेद-भाव का वर्णन नहीं दिखाई पड़ता। परंतु समाज के कुछ तुच्छ प्राणियों की मिथ्या बातों के कारण ही समरसता फीकी पड़ने लगी है। हमें विशेषकर युवाओं को दिग्भ्रमित होने से बचाना चाहिए और उनमें इस प्रकार के संस्कार विकसित करने चाहिए जिससे सामाजिक एकता व समरसता का माहौल कायम रहे। हम सबको मिलकर सामाजिक एकता, जुटता व समरसता का संकल्प लेना चाहिए ताकि फिर से हमारा बिखरता समाज एक ही माला में गुंथकर समरसता की अनूठी मिसाल बन जाए।

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