उबैदुर्रहमान सिद्दीकी (इतिहासकार एवं लेखक)
गाजीपुर। उबैदुर्रहमान सिद्दीकी (इतिहासकार एवं लेखक) ने पूर्वांचल न्यूज डाट काम को बताया कि 1869 ईस्वी में स्थापित चश्मय रहमत ओरिएंटल कालेज के संग्रहालय में अनेक फारसी,अरबी, उर्दू, संस्कृत तथा हिंदी की पांडुलिपियां सुरक्षित है. उनमें एक उर्दू लिपि में प्रकाशित बाल्मिकी रामायण 1867 की है जो लखनऊ के प्रेस नवल किशोर से 352 पृष्टों में है. दर असल गाजीपुर के मुहल्लाह मियांपुरा निवासी डेप्युटी कलक्टर देवीप्रसाद साहब के कहने पर मोहल्ला रायगंज निवासी हरबख्त ज्ञानी परमेश्वर दयाल से उर्दू भाषा में अनुदित कराया था . जैसे किसी पुस्तक के सर्वाधिकार सुरक्षित रखने के लिए आज आईएसबीएन नंबर लिया जाता है , उस समय पुस्तक की रजिस्ट्री हुआ करती थी. इस उर्दू बाल्मिकी रामायण के मुख्य पृष्ट पर लिखा है कि लेखक का सर्वाधिकार सुरक्षित रहे, इसलिए इस पुस्तक की रजिस्ट्री हसब एक्ट 25 1867 नंबर 10 तहत कराई गई है ताकि अन्य कोई इसका प्रकाशन न कर सके, वर्ना कानूनी कारवाई की जाएगी। हिंदू मान्यताओं में प्रचलित पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र जानने व समझने के लिए पहले मदरसों तथा गुरुकुलों के पाठ्यकर्मों में शामिल था. उसकी अब एक प्रति मदरसा चश्मय रहमत की लाइब्रेरी में है जिसको अपनी अंग्रेजी में गाजीपुर के इतिहास, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक पर लिखते समय देखा था. इसे पढ़कर यह भी पता चला कि नाट्यकला में भी इसका प्रयोग किया जाता था। इस पुस्तक की विशेषता है कि उर्दू भाषा के साथ साथ कही कही संस्कृत तथा हिंदी भाषा का प्रयोग हुआ है. इसमें रामलीला के कथानक बड़े ही रोचक है. श्रीराम के राज्याभिषेक के समय का श्रृंगार, राम भरत मिलाप व राम रावण महासंग्राम तथा लंका की वाटिका में श्रीमाता सीता व्याकुल रहना तथा विजयोप्रांत विभीषण के राज्याभिषेक की स्थिति को भी चित्रों द्वारा दर्शाया गया है. इसमें एक स्थान पर एक बेटे की कल्पना का विवरण दिया गया है जो सभी का प्यारा है तथा पूरी तरह एक “आदर्श बेटा” है. गौरव और प्रतिबद्धता की जिम्मेदारियां निभाने के लिए निकलने से पहले वह अपनी माताश्री के आशीर्वाद के अलावा कुछ अपने साथ नही ले जाता है. बस इतना कहता है कि ईश्वर का आशीर्वाद बना रहेगा तबतक वह जंगली वातावरण में भी अपनी माताश्री की उपस्थिति महसूस करता रहेगा :
उसका करम शरीक है तो गम नही
दास्तां ए दश्त दमन ए मादर से कम नहीं
अर्थात: (यदि ईश्वर का आशीर्वाद है तो उसे दुख नहीं है, जंगल का माहौल भी मां की ममता से कम नहीं है )
इस पुस्तक में एक स्थान पर है :
बाहर कुंडली से चली, धोखा खा गई
रावण के चाल में, है महारानी आ गई
अर्थात: ( जैसे ही महारानी लक्ष्मण रेखा से बाहर निकली, रावण के बिछाए जाल में फंस गई)
अंत में है :
रस्म ओ रिवाज ए राम से आरी है शर पसंद
रावण की नीतियों के पुजारी है शर पसंद
अर्थात: (जो राक्षस को पसंद करते है, वह राम की परंपरा से दूर रहते है, वो रावण की परंपरा की पूजा करते है)
गाज़ीपुर की कचहरी में। हरिबख्त ज्ञानी परमेश्वर दयाल साहब मुख्तार थे तथा फारसी,उर्दू के साथ साथ संस्कृत भाषा के भी प्रकांड विद्वान थे जिन्होंने श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण, रावण, हनुमान के साथ अलग अलग आए प्रसंगों के भी बहुत सुंदर चरित्र चित्रण भी चित्रित किया है.