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बाली-सुग्रीव लड़ाई, श्री हनुमान माता सीता से मिलन, लंका दहन देखकर दर्शक हुए रो‍मांचित

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श श्रीराम लीला मण्डल के द्वारा स्थानीय लंका के मैदान में लीला के 13वें दिन 22 अक्टूबर रविवार सायं 7ः00 बजेे बाली सुग्रीव लड़ाई, श्री हनुमान सीता मिलन, लंका दहन लीला का मंचन किया गया। लीला के दौरान श्रीराम लक्ष्मण सीता की खोज करते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पहुँचकर हनुमान के द्वारा सुग्रीव से मित्रता होने के बाद सुग्रीव द्वारा बाली के सताये जाने के सम्बन्ध में श्रीराम से अवगत कराते है। श्रीराम ने सुग्रीव की बात को सुनकर बाली से युद्ध करने के लिए सुग्रीव को भेजते है। युद्ध के दौरान बाली द्वारा सुग्रीव को मारकर मूर्छित कर दिया जाता है, होश आने पर सुग्रीव श्रीराम के पास जा करके कहता है कि प्रभु बाली ने मुझे मारकर अधमरा कर दिया। सुग्रीव के बात को सुनकर पुनः श्रीराम ने बताया कि मैं वाण इसलिए नही चलाया कि दोनो भाईयों का मुख एक समान है, यह कहके दूसरे बार पुनः सुग्रीव को माला पहनाकर युद्ध के लिए बाली के पास श्रीराम भेजते है। अन्त में श्रीराम के कथनानुसार बाली से युद्ध करने के लिए सुग्रीव युद्ध भूमि में जाता है, इतने में श्रीराम ने देखा कि पुनः बाली द्वारा सुग्रीव को मार दिया जायेगा तब वे एक पेड के सहारे से अपने बाण से बाली को मार गिरातेे है। बाली मूर्छित होकर जमींन पर गिर पड़ता है, बाली को थोड़ी देर बाद होश आने पर श्रीराम को देख करके हाथ जोड़ करके कहता हैं कि मैं बैरी सुग्रीव पिआरा कारण कवन नाथ मोहिमारा, हे प्रभु मेरी दुश्मनी सुग्रीव से है मैंने आपका क्या बिगाड़ा कि आप दोनों भाई के बीच में आकर मुझे बाण से मारकर घायल कर दिया। बाली केे मुख से इस प्रकार की बात सुन करके श्रीराम कहते है कि हे बाली तुने अपने छोटे भाई सुग्रीव को सताते हुए उसको अपने राज्य से निष्कासित कर दिया, और उसकी पत्नी को तुमने अपने पास रख लिया है, इसलिए तुम्हे मारने में कोई दोष नही है। अगर आप चाहो तो मैं आपको जीवन दान दे सकता हूँ, श्रीराम के बात को सुन करकेे बाली ने कहा जनम-जनम मुनि जतन कराही अन्त राम मुख आवत नाही। उसने कहा कि प्रभु ऋषि मुनि आपका स्मरण करते है, फिर भी आपका दर्शन नही पाते है मैं तो भाग्यशाली हूँ कि आपके द्वारा मैं मारा जा रहा हूँ। इतना कहने के बाद बाली ने अपने पुत्र अंगद को श्रीराम के चरणों में डालते हुए कहा कि हे प्रभु इस बालक को अपने शरण में रखते हुए अपनी कृपा दृष्टि इस पर बनाये रखियेगा, इतना कहने के बाद बाली प्रभु श्रीराम के चरणो में अपने नश्वर शरीर को त्याग देता है। उधर बाली की पत्नी तारा अपने पति को वीरगति प्राप्त का समाचार सुनकर वह श्रीराम के पास आ करके श्रीराम के समक्ष विलाप करती है, उसके विलाप को देखकर श्रीराम प्रभु उसे समझाते है कि हे तारा क्षिति जाल पावक गगन समिरा पंच रचित अति अधम शरीरा, इस प्रकार का उपदेश दे करके बाली पत्नी तारा को सान्तवना देते हुए कहते हे कि हे तारा अपने पति का नश्वर शरीर को ले जा कर विधि विधान के साथ अपने पति का अन्तेष्टि करो। उधर श्रीराम द्वारा किष्किन्धा राज का राजा सुग्रीव को लक्ष्मण के द्वारा दिलाते है। सुग्रीव किसकिन्धा का राज पाते ही अपने दरबार में वानरी सेनाओं को इकट्ठा करता है और श्रीराम के भार्या सीता जी की खोज के लिए अपने सेनाओं को आज्ञा देता है अपनी राजा की आज्ञा पाकर जामवन्त अंगद नील नल हनुमान सहित सीता की खोज मे निकल जाते है। थोड़ी दूर हनुमान जी जामवन्त अंगद समुद्र के तट तक पहुँचते है, जहां सम्पातीय अधमरा होकर पड़ा था, जहां सम्पाति ने देखा कि वानरी सेना हमारी ओर आ रही है भगवान की कृपा है कि आज मेरे लिए आहार भेज दिया, सभी वानरी सेना उसके चेहरे को देखते हुए समझ गयी कि ये वानरी सेनाओं को समाप्त करना चाहता है, इसके बाद जामवन्ती जी गिद्ध राज जटायु के बारे में बात कर ही रहे थे कि सम्पाति के कानो मे भनक चला गया वह वानरी सेनाओं के बीच जा करके अपने भाई गिद्ध राज जटायु के विषय में पूछता है, जामवन्त जी ने कहा कि गिद्ध राज जटायु का भाग्य अच्छा है, कि राम राज के लिए अपने शरीर को भगवान के प्रति समर्पण कर दिया। इतना सुनते ही सम्पाति सीता जी का पता बताते हुए कहता है कि हे जामवन्ती मैं अब बूढ़ा हो चला नही तो मैं सत जोजन समुन्द्र पार करके सीता जी को ले आता, मैं देख रहा हूँ कि सीता जी लंका के अशोक वाटिका के नीचे बैठी हुई है। इतना सुनने के बाद हनुमान जी लंका में छलांग लगा देते है, थोडी देर में लंका पहुँचकर अशोक वाटिका के नीचे राक्षसों के बीच सीता जी को बैठे देखते है, अशोक वाटिका में ही सीता हनुमान का मिलन हुआ। अंत में रावण पुत्र इन्द्रजीत आता है और हनुमान को वाधकर रावण के दरवार में ले जाता है। रावण के आदेश पर हनुमान के पूंछ में आग लगाते है। श्री हनुमान पूंछ में आग लगा देखकर आकाश मार्ग की ओर बढते है। और उपर निचे आते जाते है। इस अपने पूंछ में आग के माध्यम से पूरे लंका नगरी को जलाकर राख कर देते है। इस दृश्य को देखकर दर्शक भाव विभोर हो गये। इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, मनोज कुमार तिवारी, रामसिंह यादव, विशम्भर नाथ गुप्ता आदि रहे।

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