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गाजीपुर: धनुष मुकुट पूजन के साथ शुरू हुआ अति प्राचीन रामलीला

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी 10 अक्टूबर मंगलवार को शाम 7ः00 बजे से धनुष मुकुट पूजन के साथ रामलीला का आयोजन शुरूआत किया गया। धनुष मुकुट का पूजन मुख्य अतिथि सदर एस0डी0एम0 मा0 प्रखर उत्तम व क्षेत्राधिकारी गौरव कुमार द्वारा धनुष मुकुट का विधि विधान के साथ पूजन आरती किया गया। इसके बाद नगर पालिका अध्यक्ष सरिता अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष विनोद अग्रवाल, भाजपा के संतोष कुमार तथा कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, संयुक्त मंत्री लक्ष्मी नारायण उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी प्रबन्धक, वीरेश राम वर्मा, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, अशोक अग्रवाल ने पूजन आरती किया। इसके बाद वंदे वाणी विनायकौ आदर्श श्री रामलीला मण्डल के द्वारा नारद मोह व श्रीराम जन्म लीला का मंचन किया गया। बताते हैं कि एक समय देवर्षि नारद एक गुफा के अंदर भगवान के तपस्या लीन हो गये। जब इन्द्र को पता चला कि देवर्षि नारद हमारे राज सिंहासन को पाने के लिए तपस्या कर रहे हेै। अतः वह डरकर अपने मित्र कामदेव को बुलवाते है तथा उन्हें आदेश देते हैं कि आप अपसराओं के साथ नारद जी का तपस्या भंग करने तपस्थली पर जाये, जिससे हमारा राजसिंहासन बच सके, देवराज इन्द्र की आज्ञा का पालन करते हुए कामदेव नारद ऋषि के तपस्या को भंग करने के लिए उनके पास पहुँच गये तथा काफी प्रयत्न किया बावजूद इसके नारद जी पर उनका कोई असर नही पड़ा। अन्त में हारकर नारद जी चरणों में गिरकर दण्डवत प्रणाम करके वापस देवराज इन्द्र के पास चले जाते है, अब नारद जी को यह आभास होता है कि मैंने कामदेव पर विजय प्राप्त कर लिया। इस बात का उन्हें मोह पैदा हो गया। वे अहंकार में चूर हो करके ब्रम्हा और महेश के पास पहुँचकर कामदेव पर विजय प्राप्त करने की सूचना दोनो देवताओं को देते है। उनके बात को सुनकर ब्रम्हा और शिव जी ने कहा देवर्षि नारद इस बात को तो आपने हमसे कहा लेकिन विष्णु जी से इस बात को मत कहिएगा, बावजूद इसके देवर्षि नारद विष्णु जी के पास जाकर कामदेव पर विजय प्राप्त करनेे की सारी बाते बता देते है। भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद जी से सारी बातों को सुनकर अपने भक्तो की रक्षा के लिए एक उपाय करते है वह उपाय यह है कि अपने माया से माया पूरी नगर का निर्माण किया, वह नगर राजा शीलनिधि के अधीनस्थ था राजा शिलनिधि अपनी पुत्री विश्व मोहिनी का स्वयम्बर रचे थे, जिसमें सभी राजाओं के साथ नारद जी भी पहुँचते है नारद जी को देखकर राजा शिलनिधि देवर्षि नारद का आदर सम्मान करते है तथा अपनी पुत्री के भाग्य के बारे में नारद जी से पूछते है देवर्षि नारद विश्व मोहिनी के हाथ को देखते ही मोहित हो गये, वे विश्व मोहिनी से स्वयम्बर रचाना चाहते थे। इस बात को लेकर देवर्षि नारद भगवान विष्णु के पास जाकर कहते है कि हे प्रभु आपन रूप देहू प्रभु मोहि आन भांति नहिं पावौ ओहि। नारद जी की बात सुनकर भगवान विष्णु ने उन्हें बंदर का रूप देकर अपने यहाँ से उन्हें विदा करते है, नारद जी बंदर का रूप लेकर पुनः स्वयम्बर में जातेे है तथा राजाओं के बीच में बैठ जाते है जहाँ विश्व मोहिनी वरमाला लिए स्वयम्बर में विचरण कर रही थी। इसी बीच भगवान विष्णु स्वयम्बर में आकर विश्व मोहिनी से वरमाला धारण कर उसे अपने साथ विष्णु लोक के लिए लेकर चले जाते है। उधर शिवगणों द्वारा नारद जी के रूप को देख्रकर शिवगणों द्वारा उनकी हंसी उड़ाते हुए कहा कि आप अपना मुँह शीशे में तो देख लीजिए जब उन्होंने शीशे में मुँह देखा तो बंदर का रूप दिखायी दिया, वे क्रोधित होकर भगवान विष्णु के पास जाकर श्राप दे देते है कि हे विष्णु जिस प्रकार आपने मुझसे छल किया है मैं आपको श्राप देता हूँ कि जिस विश्व मोहिनी के लिए मैं तड़प रहा हूँ एक दिन वो समय आयेगा कि आप त्रेता युग में श्रीराम के रूप मेें अवतार लेंगे और यही विश्व मोहिनी सीता के रूप में अवतार लेगी और रावण द्वारा उसका हरण होगा, उस समय यही बंदर भालू आपकी मदद करेंगे इस प्रकार का श्राप दे करके वहाँ से चले जाते है जब नारद जी का मोह भंग होता है तो पुनः भगवान विष्णु के पास जा करके उनके चरणों में गिर करकेे अपने दिये हुए श्राप को वापस लेना चाहते थे, नारद जी की बात सुन करके भगवान विष्णु ने कहा हे देवर्षि नारद आपने मुझे श्राप दिया कहां मैंने तो जान बूझकर ऐसा काम किया कि आप मुझे श्राप दे दे। अब मैं आपको एक युक्ति बताता हँू कि आप पर्वत पर जाकर भगवान शिव की अराधना करे, इतना सुनने के बाद देवर्षि नारद भगवान विष्णु के आज्ञा को स्वीकार कर तपस्या के लिए विश्व लोक से चले जाते है। इस प्रकार नारद जी का मोह भंग होता है। उधर, राजा दशरथ पुत्र के लिए अपने राजदरबार में बैठे थे कि उनके कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ उनके राजदरबार में पहुँचते है राजा को दुःखी देखकर सारी बाते पूछते है दशरथ जी ने कहा कि गुरूदेव क्या मेरे बाद सूर्यवंश का दीप बुझ जायेगा, इतना सुनने के बाद महर्षि वशिष्ठ ने राजा दशरथ कोे आश्वासन देते है कि हे दशरथ आप एक पुत्र के लिए परेशान है और रो रहे है मैं तो देख रहा हूँ कि आपके घर में चार पुत्र अवतार लेंगे। आप महर्षि श्रृंगऋषि को बुलाकर पुत्र कामेष्टी यज्ञ कि तैयारी करे। इतना सुनने के बाद राजा दशरथ नंगे पांव श्रृंगीऋषि के पास जा करके अनुनय विनय करतेे है, उनके विनय को सुनकर श्रृंगऋषि ने कहा कि हे राजन आप अपने राजदरबार में जाकर यज्ञ की तैयारी कराइये थोड़ी दिनों बाद श्रृंगऋषि महाराज दशरथ के पास जाकर पुत्र कामेष्टी यज्ञ विधि विधान से करवाते है। यज्ञ से प्रसन्न हो करकेे अग्निदेव राजा दशरथ के खीर भरा कटोर दे करके कहा कि हे राजन आप इस खीर कोे तीनों रानियों में वितरण कर दीजियेगा, अग्नि देव की आज्ञा पाकर महाराज दशरथ रानियों के कक्ष में पहुँचकर अग्निदेव द्वारा खीर को तीनों रानियों में बांट दिया। इसके बाद तीनों रानियों ने गर्भधारण कर लिया। खीर के प्रभाव से कौशल्या ने श्रीराम को जन्म दिया उसके बाद कैकेयी ने भरत को जन्म दिया और सुमित्रा ने लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया। सारी अयोध्या ने खुशियो का लहर दौड़ गया, उधर भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर ध्यान मग्न थे। उन्होंने अंतरधान होकर देखा कि हमारे अराध्य देव श्रीराम ने महाराज दशरथ केे घर पर अवतार ले लिया है वे अपने आसन से उठ करके दोनो ंहाथ जोडकर स्तुति करते है कि भय प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी हर्षित महतारी मुनिमन हारी अद्भुत रूप विचारी। उधर अयोध्यावासियों द्वारा सोहर बधइया आदि मांगलिक गीत गाती है। इस लीला को देखकर दर्शक उच्च स्वर में जय श्री राम व हर हर महादेव के नारों से गूंजाय मान कर दिया। इस अवसर पर कमेटी के उपाध्यक्ष विनय कुमार सिंह, उपाध्यक्ष डा0 गोपाल जी पाण्डेय पूर्व प्रवक्ता, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, संयुक्त मंत्री लक्ष्मीनारायन, उपमंत्री पण्डित लवकुमार त्रिवेदी उर्फ बड़े महाराज, प्रबन्धक दिनेश राम वर्मा, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, अजय कुमार पाठक, ओम नारायण सैनी, अनुज अग्रवाल, सरदार चरनजीत सिंह, राजेश प्रसाद, अशोक अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल, पण्डित कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, रामसिंह यादव, विशम्भर गुप्ता आदि रहे।

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