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अमरमणि त्रिपाठी पर दांव क्यों लगा रही है भाजपा ?

शिवकुमार

गाजीपुर। अमरमणि त्रिपाठी को कभी यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के सबसे बड़े ब्राह्मण नेताओं में गिना जाता था। अमरमणि ने पहली बार अपनी ताकत तब साबित की जब उन्होंने इलाके के प्रभावशाली ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से चुनावी दंगल में मुकाबला किया। वह शाही के खिलाफ 1981 और 1985 के विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन यूपी की दो प्रमुख जातियों के नेताओं के बीच मुकाबले ने उन्हें ब्राह्मण चेहरे के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद वह 1989, 1996, 2002 में महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीते। परिसीमन के बाद नौतनवा सीट से 2007 में जीत हासिल की। 2003 में अमरमणि को मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया। उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। लेकिन, 2017 के अंत में उनके बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने अपने प्रभाव की बदौलत नौतनवा से विधानसभा चुनाव जीता। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दोषियों की समयपूर्व रिहाई के लिए बनाई गई नीति के तहत अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी की समय से पूर्व रिहाई का आदेश दिया है। अमरमणि को अब राजनीतिक दुनिया बहुत बदली हुई लग सकती है। गोरखपुर अब पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ के कब्जे में है। यूपी में अधिकांश राजनीतिक दल भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। “भाजपा भी आराम से एक हत्या के दोषी पर दांव लगा रही है। अमरमणि की रिहाई से ब्राह्मणों से भाजपा के संबंध और प्रगाढ़ होने की संभावना है।

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