Breaking News
Home / ग़ाज़ीपुर / धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर एवं श्री राम विवाह का मंचन देख दर्शक हुए मंत्रमुग्ध

धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर एवं श्री राम विवाह का मंचन देख दर्शक हुए मंत्रमुग्ध

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला के तीसरे दिन 30 सितंबर सोमवार  शाम 7:00 बजे से हरिशंकरी स्थित श्री राम चबूतरा पर धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर, एवं सीताराम  विवाह लीला का मंचन किया हुआ। लीला शुरू होने से पूर्व कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल द्वारा प्रभु श्री राम का पूजन आरती किया। इसके बाद बंदे बाणी विनायको आदर्श श्री रामलीला मंडल के कलाकारों द्वारा धनुष यज्ञ परशुराम लक्ष्मण संवाद व सीताराम विवाह का मंचन हुआ। मन्चन में दर्शाया गया कि महाराज जनक अपनी पुत्री सीता का स्वयंवर रचाया। स्वयंवर में सभी राजाओं को निमंत्रण भेजा गया। निमंत्रण पाकर सभी राजा स्वयंवर में पहुंचे।उधर ब्रह्मर्षि विश्वामित्र भी अपने शिष्य राम लक्ष्मण के साथ स्वयंवर में पहुंचे। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र को  देखकर राजा जनक अपने सिंहासन से उठकर विश्वामित्र को दंडवत करके उन्हें आदर के साथ सिंहासन पर बैठाया। राजा जनक के आग्रह पर विश्वामित्र अपने शिष्य श्रीराम लक्ष्मण के साथ आसन ग्रहण किया। इसके बाद धनुष यज्ञ का कार्य शुरू होता है। राजा जनक के मंत्री चाणूर राजा जनक के आदेश पर सभा को संबोधित किया कि जो भी शिव जी के पुराने धनुष को तोड़ देगा उसी राजा से सीता का विवाह होगा। राजा जनक के संदेश को सुनकर सभी राजा  शिव जी के पुराने धनुष पर अपना अपना बल आजमाने लगे। मगर शिव जी के धनुष तोड़ना तो दूर उसे हिला तक न सके। राजा जनक ने देखा कि सभी राजा हार कर अपना सिर झुकाए सिंहासन पर जाकर बैठ गए। उनके लज्जित हुए सर को झुका देख कर राजा जनक ने कहा कि तजहूंआस निज निज गृह जाहू, लिखा न विधि वैदेहि बिवाहू। राजा जनक के इस इस प्रकार के वचन को सुनकर लक्ष्मण जी क्रोधित होकर श्री राम के बल के बारे में राजा जनक को बताया। लक्ष्मण के क्रोध को देखकर गुरु विश्वामित्र ने लक्ष्मण को आसन पर बैठने की आज्ञा देते हैं। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर लक्ष्मण अपने आसन पर बैठ जाते हैं। उसके बाद ब्रह्मर्षि विश्वामित्र राजा जनक को उदास  देखकर श्री राम को आज्ञा देते हैं कि हे राम  शिवजी के धनुष को तोड़कर महाराज जनक के संदेह को दूर करो। गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर  श्री राम  शिवजी, गुरु विश्वामित्र तथा उपस्थित सभी राजाओं को प्रणाम  करने बाद भगवान शिव के धनुष के पास जाकर सहज में धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाया देखते-ही-देखते धनुष  टूट गया। शिव‌  धनुष  टूटने की आवाज परशुरामा कुंड में तपस्या में लीन परशुरामजी के कान में सुनाई दी तो वे क्रोधित होकर स्वयंवर में आते हैं और सभी उपस्थित राजाओं से पूछते हैं कि हमारे आराध्य देव शिव के धनुष को तोड़ने की साहस किसने किया। इतने में लक्ष्मण जी भी क्रोधित जाते हैं। दोनों में काफी देर तक परशुराम लक्ष्मण संवाद हुआ। अंत में परशुराम जी अपने क्रोध को शांत किये और तप के बल पर श्री राम का विराट रूप में नारायण का दर्शन करके श्रीराम को धनुष बाण देकर के परशुराम जी स्वयंवर से अपने धाम के लिए चले  जाते हैं। इसके बाद राजा जनक गुरुजनों के‌ आदेश का पालन करते हुए अपने दूतों‌ को  राम सीता के विवाह का निमंत्रण अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पास भेज कर बारात लाने का निवेदन करते हैं। महाराज दशरथ महाराज जनक का निमंत्रण पाकर अयोध्या से बारात सजाकर जनकपुर के लिए प्रस्थान करते हैं। जनकपुर में राजा जनक ने  बारातियों का स्वागत किया और धूमधाम के साथ सीता और राम का विवाह संपन्न हुआ। जनकपुर वासियो द्वारा सीताराम विवाह से संबंधित मांगलिक गीत प्रस्तुत किया गया। इस मौके पर कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष विनय कुमार सिंह, मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी, उपमेला प्रबंधक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, कुश कुमार त्रिवेदी, राजकुमार शर्मा, राम सिंह यादव, पं0कृष्ण बिहारी त्रिवेदी उपस्थित रहे।

[smartslider3 slider="4"]

About admin

Check Also

गाजीपुर: वेतन नही मिलने से भूखमरी के कगार पर है बिजली विभाग के कम्‍प्‍यूटर ऑपरेटर

गाजीपुर। पूर्व अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खंड द्वितीय गाज़ीपुर के तानाशाही पूर्ण रवैया की घोर …