शिवकुमार
गाजीपुर। लोकसभा चुनाव 2024 में अफजाल अंसारी के जीत पर राजनीतिक गलियारों में क्रिया-प्रतिक्रिया चल रही है। सियासी समीकरण पर एक बात यह तय हो गया है कि अफजाल अंसारी के संजीवनी है यदुवंशी। जब-जब अफजाल अंसारी ने साइकिल की सवारी की है तब-तब उन्हे सांसदी का ताज पहनने को मिला है। 2004 में सपा के टिकट पर वह पहली बार गाजीपुर के सांसद बने थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में जब वह बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े तब वह सपा के उम्मीदवार राधेमोहन सिंह से चुनाव हार गये। इसके बाद उन्होने कौमी एकता दल पार्टी का गठन किया और 2014 में बलिया लोकसभा से चुनाव लड़े और चुनाव हार गये। गाजीपुर में सपा को पराजित करने के लिए मुलायम सिंह यादव के घोर विरोधी डीपी यादव को कौमी एकता दल से चुनाव लड़ाया। यदुवंशियों के वोट में बिखराव हुआ और गाजीपुर में कमल का फूल खिला। मनोज सिन्हा सांसद निर्वाचित हो गये। गाजीपुर में सपा की हार से आक्रोशित यादवों ने 2017 के विधानसभा चुनाव में मुहम्मदाबाद सीट पर अफजाल अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी को हरा दिया। राजनीतिक भविष्य पर खतरा मंडराते देख एक बार फिर अफजाल अंसारी शिवपाल यादव के शरण में गये लेकिन मुलायम सिंह के पारिवारिक कलह के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अंसारी परिवार के लिए दरवाजा बंद कर दिया। मौके की नजाकत को देखते हुए अफजाल अंसारी नंगे पांव बसपा सुप्रीमो बहन जी के दरवाजे पर गये और पार्टी ज्वाइन करने के बाद उन्होने कसमे खाईं कि वह मरते दम तक बहन जी का साथ नहीं छोड़ेंगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा सपा और रालोद के गठबंधन में गाजीपुर लोकसभा से एक बार फिर अफजाल अंसारी हाथी पर सवार होकर चुनाव लड़ें और दूसरी बार सांसद बन गये। इस चुनाव में भी सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के अपील पर यदुवंशियों ने झूम कर अफजाल अंसारी को वोट किया था। जिसके बदौलत उन्हे बड़ी जीत मिली। इस चुनाव में गाजीपुर लोकसभा में यदुवंशियों की अहमियत अफजाल अंसारी समझ चुके थे कि इसीलिए अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में अफजाल अंसारी सपा कार्यकर्ताओं के बीच ही ज्यादा समय रहे और 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने दोनों भतीजों को सपा और सुभासपा के टिकट पर विधायक बनवा दिया। लेकिन इस चुनाव में उन्होने बसपा उम्मीदवारों के लिए बहुत कम प्रचार किया और घर से बाहर ही नहीं निकले। यह बात बसपा के शीर्ष नेतृत्व के भी संज्ञान में था और धीरे-धीरे पार्टी अंसारी परिवार से किनारा कसने लगी। अफजाल अंसारी मौके की सियासत देखते हुए सपा के मूल वोटरों यदुवंशियों की संख्या को पाने के लिए अखिलेश यादव से नजदीकियां बनाने लगे। इन राजनीतिक घटनाचक्र को सपा के पूर्व सांसद राधेमोहन सिंह ने पहले ही भांप लिया था। उन्होने प्रेसवार्ता कर इस बात की घोषणा की कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बसपा सांसद अफजाल अंसारी ही सपा के उम्मीदवार होंगे और राधेमोहन सिंह ने पार्टी छोड़ दिया। इसलिए राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदुवंशी ही अफजाल अंसारी के संजीवनी हैं और उन्ही के दम पर वह बार-बार भाजपा के विकास को हराने का दावा करते हैं।