ग़ाज़ीपुर। शहर के अष्टभुजी कॉलोनी स्थित द प्रेसीडियम इंटरनेशनल स्कूल में अभिभावक की चेतना विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के आरंभ में विश्वेश्वरैया टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से एमटेक और दिल्ली मेट्रो रेलवे कॉर्पोरेशन की भूतपूर्व प्रोजेक्ट लीड जान्हवी पाटिल ने कहा कि, अभिभावक एक छात्र के जीवन की बुनियाद हैं, इसलिए अभिभावक की चेतना का उर्ध्वगामी और जागरूक होना आवश्यक है। सजग और सचेत अभिभावक बच्चे की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करता है, जबकि एक सोया अभिभावक बाजार में विज्ञापनों के आधार पर बच्चों की आवश्यकता का निर्धारण करता है। दूसरी श्रेणी के अभिभावक बच्चों को ऐसे परिवेश में धकेलने का कार्य करते हैं जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए अनुपयुक्त हैं। गणित के युवा शिक्षक सौरभ प्रजापति ने कहा कि, शिक्षा का सबसे बड़ा रोल मॉडल बाबा साहेब अंबेडकर हैं। शिक्षा के माध्यम से उन्होंने वह कर दिखाया जो सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। इसलिए अभिभावकों को अपने बच्चों की शिक्षा के लिए माध्यम का चयन करते समय दूरी या किसी अन्य संसाधन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। उन्हें इस पर ध्यान देना चाहिए की कहां उनके बच्चे को बाबा साहेब का साहस, गांधी की नैतिकता और नेता जी सुभाष की दूरगामी दृष्टि मिल सकती है। बीटेक एमएससी बीएड धारी शिक्षक संभव श्रीवास्तव ने कहा कि, शिक्षा में अभिभावकों की सबसे बड़ी भूमिका है। अक्सर विद्यालय अभिभावकों के फीडबैक को नकार कर उन्हें ही दोषी और जिम्मेदार ठहरा देते हैं। जबकि अभिभावक की प्रत्येक बात पर सही तरीके से ध्यान देकर विद्यालय अपने में सुधार ला सकते हैं। इसलिए अभिभावकों का सम्मान किसी भी श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान का विशिष्ट गुण है। अभिभावकों को यह भी सोचना होगा कि, यदि सारी जिम्मेदारी मेरी है तो विद्यालय क्या कर रहा है। उन्हें नियमित रूप से शिक्षकों से मिलकर अपने बच्चों के विकास पर बात करनी चाहिए और भविष्य की योजना पर कार्य करना चाहिए। कार्यक्रम के अध्यक्ष एनआईटी से बीटेक और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापोर से एमबीए, सिटोबैंक के भूतपूर्व सहायक उपाध्यक्ष डॉक्टर माधव कृष्ण ने कहा कि, एक अच्छे अभिभावक को सबसे पहले अपने बच्चे से जुड़ जाना होगा और उस पर अटूट विश्वास रखना होगा। बहुधा लोग अपने बच्चों को नालायक, बेकार और चुका हुआ बताने लगते हैं। यह कोसना बंद करना होगा। यदि आप अपने बच्चों पर विश्वास नहीं करेंगे, तो आपका बच्चा कभी भी आत्मविश्वास से नहीं भर सकता और आत्मविश्वास के बिना एक बच्चा जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता है। भारतीय दर्शन प्रणाली में योग का यही अर्थ है, जुड़ना। अगर कोई विद्यालय आपके बच्चे को बेकार कहता है या आपको बेकार कहता है, और आप उसके आगे गिड़गिड़ाते हैं तो आप एक अभिभावक के रूप में असफल सिद्ध हुए। प्रत्येक बच्चे में एक उत्कृष्टता छिपी हुई है, इस उत्कृष्टता का अनावरण ही प्रत्येक अभिभावक का लक्ष्य होना चाहिए। यदि एक बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता तो इसके पीछे के कारणों पर मनन होना चाहिए, न कि सारा दोष बच्चे पर मढ़ देना चाहिए। कुल मिलाकर अभिभावकों की चेतना का सकारात्मक, संस्कारित, विश्वासी और सजग होना एक संगठित परिवार, सशक्त समाज, विकसित राष्ट्र और ग्लोबल नागरिकों के स्वप्न की आधारशिला है। संगोष्ठी के प्रतिभागियों का स्वागत एमए बीएड नम्रता चतुर्वेदी और संचालन एमबीए बीएड रुचि सिंह ने किया। कार्यक्रम में अमोल सिंह, अनिशा सिंह, श्वेता सिंह, सत्यबिंदु सिंह, प्रोफेसर शिखा तिवारी इत्यादि उपस्थित रहे। सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिया जाएगा।
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