शिवकुमार
गाजीपुर। माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के निधन के बाद अब सियासी गलियारों में चर्चा हो रही है कि अंसारी परिवार के राजनीति पर क्या असर पड़ेगा। आने वाले लोकसभा चुनाव में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। क्या डॉन की सहानुभूति समाजवादी पार्टी को मिलेगी या अपने परम्परागत वोट में सिमट जायेगी। हालांकि इस विषय पर सपा के दिग्गज नेता और पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव ने मीडिया के सामने कुछ बोलने से इंकार कर दिया लेकिन मुख्तार अंसारी के कब्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर एक संदेश दिया है। सियासी गलियारों में दो तरह के विचार आ रहे हैं, पहला तो मुख्तार अंसारी के निधन से सपा को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में लाभ मिलेगा और उनके बेटे उमर अंसारी को पार्टी स्टार प्रचारक के रुप में पेश कर सकती है। वहीं दूसरे विचारधारा के लोग बता रहे हैं कि पूर्वांचल के राजनीति में पहली बार मुख्तार अंसारी ने क्राइम और राजनीति का कॉकटेल बनाकर लगभग चार दशकों तक अंसारी परिवार का सिक्का चलाया। अपने हिसाब से पार्टियां बदली। जब चाहा साइकिल पर सवार हो गये और जब चाहा हाथी पर सवार हो गये और अपनी सुविधा के अनुसार नई पार्टी का भी गठन कर लिया। यह सब जानते हुए भी सपा-बसपा के हाईकमान उनके आगे नतमस्तक होकर पार्टी में शामिल कर लेते थे। मुख्तार अंसारी चाहे बाहर हो या जेल में अपने परिवार के लोगों के लिए चुनाव में अच्छी फिल्डिंग सजाते थे जिससे कि वह खुद पांच बार विधायक और उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी पांच बार विधायक और दो बार सांसद निर्वाचित हो चुके हैं। अपने बेटे अब्बास अंसारी और अपने भतीजे को मन्नू अंसारी को भी विधायक बनवा दिया था। अब अंसारी परिवार का पावर आफ सेंटर मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है ऐसे में जो मुस्लिम क्षत्रप इनके आगे अपनी राजनीति की दुकान चला नही पा रहे थे अब वह भी मौका पाकर अपने को स्थापित करने के लिए पुरजोर कोशिश करेंगे। ऐसे में अंसारी परिवार को ऐसे मुस्लिम क्षत्रपों का भी सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक पंडितों के अनुसार अब मुख्तार अंसारी के निधन के बाद उनके नाम का आकर्षण समाप्त हो गया है अब जो अंसारी परिवार बोएगा वही काटेगा। ऐसे में यह लोकसभा चुनाव अंसारी परिवार के लिए अग्नि परीक्षा होगी।