गाज़ीपुर। गाजीपुर सदियों से आर्थिक दृष्टि से बहुत संपन्य रहा है. अनेक कारखाने कागज, नील,तंबाकू,साबुन थे, चुनांचा शहर गाजीपुर में जहां कागज और साबुन के कारखाने थे, वे क्षेत्र शहर में कागजी मुहल्ला और साबुनगढ़ मुहल्ले आज भी आबाद है. उनमे एक चीनी उद्योग भी था जिसका व्यापार भारत के अतिरिक्त अपविभाजित पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान तक फैला हुआ था. गाजीपुर गजेटियर का लेखक जो यहां का कलक्टर नेविल था, उसने खंड 29 में चीनी कारखानों के बारे में विस्तार से लिखा है. इसके अलावा उसके पूर्व के जिला अधिकारियों में विल्टन ओल्धम तथा डब्लू इर्विन ने जिला भर में स्थापित चीनी उद्योग के बाबत यह लिखा है कि बड़े पैमाने पर यहां की बनी चीनी देश विदेशो तक में जाती है. जनपद के कुछ प्रमुख व्यापारी इस धंधे से जुड़े है जिनके कारखानों में बनी चीनी की बड़ी मांग है क्योंकि यह उच्च्याकोटी की होती है. उनके कई ऐसे परिवार थे जिनके चीनी डिपोज बनारस, प्रयागराज, कन्नौज, दिल्ली, अमृतसर से लेकर लाहौर, मुल्तान तथा अफगानिस्तान के कई प्रमुख शहरों तक थे. उनमें में एक शहर का मोहल्ला लालदररवाजा का अग्रवाल परिवार भी था, जिन्होंने अकूत धन कमाया. ऐसे जनपद में अनेक परिवार थे जो इस कारोबार से जुड़े थे। जनपद में कुल मिलाकर गाजीपुर के कलक्टर नेविल के अनुसार 1881 में 436 शुगर फैक्ट्रीज थी जिनका उत्पादन सत्तर हजार माउंड ( मंडा) था जिसकी मालियत आठ लाख तीस हजार होती है. देखा जाए तो 1907 में चीनी के कारखाने घटकर कुल 97 रह गए थे जिसमे सदर में चीनी कारखाने 37, मुहम्मदाबाद में 47, सैदपुर में 6, जमानिया में 2 थे. जिसका उत्पादन 69,900 मंडा जिसका कुल मूल्य 9,46,500 था. बाद में उच्यकोटी की रिफाइंड चीनी के कारखाने गाजीपुर के राजापुर, गंगौली, नोनहरा, जांगीपुर में स्थापित हुए जहां बड़ी मात्रा में उत्पादन होता था और देश विदेश में निर्यात होती थी. लेकिन स्थिति यह है कि आज जनपद में एक भी चीनी मिल नही और एक नंदगंज की थी, वह भी बंद हो गई है. सरकार को इस उद्योग की तरफ ध्यान दे तो लोगो को रोजगार मिलने के साथ जनपद का नाम भी होगा।
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