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ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाएं किसान

गाजीपुर। आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या के कार्यक्षेत्र गाजीपुर में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र अंकुशपुर के वैज्ञानिक डॉ. पंकज कुमार ने ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने एवं उसके महत्त्व के बारे में जनपद के कृषकों को जानकारी देते हुए कहा कि गर्मी के मौसम में रबी फसल की कटाई के पश्चात्‌ तुरंत खेत की गहरी जुताई करके इसे खाली रखना उपयोगी होता है। ग्रीष्मकालीन जुताई अप्रैल से जून तक की जाती है। किसानों को जहां तक संभव हो तो फसल की कटाई के तुरंत बाद मिट्टी पलटने वाले हल का प्रयोग करके गहरी जुताई करनी चाहिए। इससे खेत की मिट्टी में नमी संरक्षित रहने के कारण ट्रैक्टर पर कम भार पड़ता है। यह जुताई से बने ढेले हवा और बारिश के पानी से धीरे-धीरे टूटते हैं। इसके अलावा, जुताई करने के द्वारा मिट्टी की सतह पर फसल के अवशेष, पत्तियाँ, पौधों की जड़ें और उखड़े गए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं। इनके सड़ने से खेत की मिट्टी में जीवाश्म और जैविक उर्वरकों की मात्रा बढ़ती है, जिससे भूमि की उर्वरता में वृद्धि होती है और मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार होता है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के दौरान खरपतवार के बीज मिट्टी की गहराई में दब जाते हैं, जिससे उनका अंकुरण और विकास रूक जाता है। यह प्रक्रिया पोषक तत्वों, जल और सूरज की रोशनी के लिए प्रतिस्पर्धा कम हो जाती है, जिससे फसल की पैदावार बेहतर होती है। गहरी जुताई के द्वारा जमी हुई मिट्टी की परतों को दरार देकर मिट्टी का वातान और जल निकासी में सुधार किया जा सकता है। इससे जड़ों को मिट्टी में गहराई तक पहुँचने और पोषक तत्वों के साथ पानी को अधिक प्रभावी तरीके से पहुँचाया जा सकता है। यह प्रक्रिया जड़ प्रणाली के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है और पौधों के विकास में बेहतर वृद्धि होती है। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करने से मिट्टी में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की गति तेज़ होती है। इस अपघटन के परिणामस्वरूप पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व निकलते हैं, जिससे वे पौधों के लिए अधिक आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। यह प्रक्रिया समय के साथ मिट्टी की उर्वरता में भी वृद्धि करती है और फसल उत्पादन की गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन लाती है। गहरी जुताई की सहायता से हानिकारक कीट और रोगों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है, जिसके द्वारा उनके जीवन चक्र को बाधित किया जा सकता है। ऐसा होने पर आने वाली फसलों में ज़्यादातर कीट तथा रोगों का प्रकोप कम हो जाता है, जिससे फसल के समग्र स्वास्थ्य में सुधार होता है और उत्पादन में स्थिरता बनी रहती है। ग्रीष्मकालीन जुताई से बारिश के पानी से होने वाले मिट्टी के कटाव में काफी कमी आती है। शोध के नतीजों में पाया गया कि ग्रीष्मकालीन जुताई से मिट्टी का कटाव 66.5 प्रतिशत तक कम हो जाता है। गहरी जुताई के द्वारा फसल के अवशेष मिट्टी की गहराई तक समा जाते हैं, जिससे उनके अपघटन और पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण की प्रक्रिया में सुधार होता है. इससे बाहरी उर्वरकों की आवश्यकता में कमी आती है और मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा में स्पष्ट सुधार होता है. यह सुधार न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य में होता है, बल्कि दीर्घकालिक उत्पादकता में भी सकारात्मक परिणाम प्रदान करता है. इसके अलावा, गहरी जुताई के बढ़ते हुए पादपों के विघटित अवशेष भूमि के अंदर मिलाया जा सकता है, यह उपजाऊ भूमि के पौधों के विकास को सशक्त बनाता है और उनकी उत्पादकता में सुधार करता है।

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