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श्री रूद्रांबिका महायज्ञ: अंतर्मन की मलिनता को धोने के लिए जप और ध्यान आवश्यक- पंडित कन्हैया द्विवेदी

गाजीपुर । जनपद के नौली क्षेत्र में चल रहे श्री रूद्रांबिका महायज्ञ के क्रम में सायंकालीन भागवत कथा सुनने के लिए काली धाम परिसर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा रहा। आसपास के क्षेत्र से सैकड़ो महिलाओं ,बड़े-बड़े बच्चियों ने बड़ी तल्लीनता से भागवत कथा का श्रवण किए। भागवत कथा के दिव्य चर्चा के क्रम में पंडित कन्हैया द्विवेदी ने कहा कि मन मस्तिष्क के अंदर की मालीनता को धोने के लिए जप और ध्यान आवश्यक है। जब तक हम भगवान के समीप नहीं बैठेंगे तब तक हम निर्मल नहीं बन सकेंगे। भगवान की शक्ति तभी हमारे अंदर प्रवेश करेगी जब हम शुद्ध व सात्विक हृदय से भगवान के पास बैठेंगे। मनुष्य भटका हुआ देवता है। जीवात्मा ने स्वयं को आत्मा से नहीं बल्कि शरीर से, मन से ,बुद्धि से ,इंद्रियों से संबंध व आबद्ध कर लिया है। वह वस्तुतः आत्मा है पर स्वयं को काल्पनिक रूप से शरीर मान बैठा है इसलिए वह बंधन में है। यह बंधन वास्तविक नहीं काल्पनिक है और यह काल्पनिक बंधन हमारे जीवन के परम उद्देश्य को प्राप्त करने में बहुत बड़ी बाधा है ।आगे उन्होंने कहा कि आज आत्म चिंतन का पर्व है कि हम अपने अंदर खोजें कि हमारे अंदर कमियां क्या-क्या है ।और जो कमियां हैं उसे निकालने में हम कितना यत्न करते हैं ।हमें अपनी समीक्षा करनी चाहिए और अपने गिरेबान में मुंह डालकर देखना चाहिए कि हमारे अंदर क्या-क्या मल विक्षेप भरे पड़े हुए हैं। चिंतन करें कि इन दुर्बुद्धि रूपी मल विक्षेप को किस प्रकार से धोया जाए ।उस परम सत्ता से हम प्रार्थना करें कि धोना आपका काम है और समर्पण हमारा काम। यज्ञ और भागवत कथा के यह प्रयोजन से क्षेत्र वासियों का हृदय हर्ष और उल्लास से भरा हुआ है। इस मौके पर वेदाचार्य डॉ पंडित धनंजय पांडे ने कहा कि ‘संसार में अनेक प्रकार के ज्ञान और विज्ञान मौजूद है। लोग अपनी-अपनी रुचि के अनुसार उन सबको सीखते हैं और लाभ उठाते हैं। पर इन सब विज्ञानों से ऊंचा एक महाविज्ञान है। जिसके बिना अन्य सब विज्ञान अधूरे एवं अनुपयोगी है। अध्यात्म वाद जीवन का वह तत्व ज्ञान है जिसके ऊपर आंतरिक और बाहरी उन्नति ,समृद्धि एवं सुख शांति निर्भर है। अध्यात्म विज्ञान वह महाविज्ञान है जिसकी जानकारी के बिना भूतल के समस्त वैभव निरर्थक है और जिसके थोड़ा सा भी प्राप्त होने पर जीवन आनंद से ओतप्रोत हो जाता है  संसार में सीखने योग्य जानने योग्य अनेक वस्तुएं हैं। परंतु आज के युग में आध्यात्मिक जीवन शैली का होना अति आवश्यक है। कार्यक्रम को सफल बनाने में पंडित गौरव मिश्रा, वैभव पांडे, हृदय नारायण सिंह, अरविंद सिंह, आशुतोष मिश्रा, विकास गुप्ता, रविकांत मिश्रा, राम बिहारी सिंह, त्रिभुवन पांडे, कृष्ण यादव की उपस्थित रहे।

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