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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सूर्य हैं शिवाजी महाराज

गाजीपुर। आगामी 21 से 26 नवम्बर तक प्रतिदिन सायंकाल भारत वर्ष की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी के काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शिवाजी महाराज के जीवन पर आधारित महानाट्य जाणता राजा का मंचन किया जाएगा। पुणे से आए तीन सौ कलाकारों द्वारा इस महानाट्य की जीवंत प्रस्तुति की जाएगी। पद्म विभूषण बलवंत मोरेश्वर पुरंदरे द्वारा मराठी में लिखित इस महानाट्य का मंचन देश के विभिन्न भागों में तथा विदेशों में भी होता रहा है। तकनीकी युग में भी रंगकर्मियों द्वारा जाणता राजा की सजीव प्रस्तुति के प्रति अदभुत आकर्षण बना हुआ है। विशेष रुप से भावी भारत को यह मंचन अवश्य देखना चाहिए। यह एक दुर्लभ संयोग है कि हम अमृत काल में हिन्दवी स्वराज्य के तीन सौ पचास वर्ष पूर्ण होने का उत्सव मना रहे हैं। ऐसे कालखंड में शिवाजी महाराज के चरित्र की चर्चा अनायास नहीं है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य, स्वधर्म, स्वभाषा और स्वदेश के लिए जो कार्य किया है वह अतुलनीय है। 6जून 1674 को उनका राज्याभिषेक एक व्यक्ति को राजसिंहासन पर बैठाने तक सीमित नहीं था। वह एक व्यक्ति नहीं, एक महान विचार, एक महान प्रेरणापुंज तथा युगप्रवर्तन के शिल्पकार थे। हिन्दुओं की चोटी और गरीब की रोटी-बेटी के रखवाले शिवाजी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के अग्रदूत थे।”वेद राखे विदित पुराण परसिद्ध राखे/राम नाम राख्यो अति रसना सुघर मैं। हिन्दुन की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन को/कांधे में जनेऊ राख्यो माला राखी गर में।”आज सम्पूर्ण विश्व में शासन के विकेंद्रीकरण की बात होती है, बड़े बड़े व्याख्यान और संगोष्ठी का आयोजन भी होता है। लेकिन 350 वर्ष पूर्व अपने शासन की बागडोर सुचारुरूप से चलाने के लिए जिस तरह शिवाजी ने सत्ता का विकेंद्रीकरण और जनतंत्रीकरण किया उससे हिंदवी स्वराज्य की एक अलग पहचान स्थापित हो गई। उन्होंने व्यक्ति केन्द्रित शासन के स्थान पर व्यवस्था आधारित शासन के सृजन पर बल दिया। शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में जनहित के कार्यों और चहुमुखी विकास के लिए अष्टप्रधान मण्डल की व्यवस्था की थी जिसमें पेशवा,अमात्य, धार्मिक मामलों के प्रमुख,सेनापति, मंत्री, सुमंत, सचिव तथा न्यायाधीश हुआ करते थे। प्रशासनिक कार्य संचालन के लिए संस्कृत और मराठी को कामकाज की भाषा बनाकर अरबी और फारसी के प्रभाव को खत्म किया गया। उन दिनों अधिकांश मुहरें फारसी में खुदी हुई थीं।शिवाजी ने उन्हें संस्कृत से बदल दिया तथा संस्कृत में राज्य व्यवहारकोश तैयार करवाया। अपनी भाषा और अपने धर्म के साथ स्वराज्य प्राप्त करने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण परिर्वतन था। भारत एक सनातन देश है,यहां पर अपना राज होना चाहिए, अपने धर्म का विकास होना चाहिए अपने जीवन मूल्यों को चरितार्थ करना चाहिए। शिवाजी का जीवन संघर्ष इसी सोच को प्रस्थापित करने के लिए था। वे कहते थे कि स्वराज्य संस्थापना ईश्वरीय कार्य है, मैं ईश्वरीय कार्य का केवल एक सिपाही हूं। राज्य धर्म का है शिवा का नहीं।एक बार किसी व्यक्ति ने स्वामी विवेकानंद से पूछा सब कुछ खोने से ज्यादा क्या बुरा है? स्वामी जी ने उत्तर दिया, उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे पर हम सबकुछ वापस पा सकते हैं। मुगलों की तलवार को कुंद करने वाले, हिन्दुस्थान के महानायक, हिंदू हृदय सम्राट शिवाजी महाराज ने भारत वर्ष की खोई हुई इसी उम्मीद को जगाने का काम किया। उन्होंने असहाय एवम् आत्मविश्वासहीन हिन्दू समाज में नई ऊर्जा का संचार किया।जब भारत का बौद्धिक परिदृश्य बंजर हो रहा था तथा सांस्कृतिक सूर्य अस्ताचलगामी हो चला था ऐसे में शिवाजी का उदय धूमकेतु की तरह होता है। अगर शिवाजी महाराज न होते तो क्या होता?”काशी कर्बला होती मथुरा मदीना होती/शिवाजी न होते तो सुन्नत होती सबकी।वास्तव में श्रेष्ठता की कसौटी क्या है?इस पर विचार करने से ज्ञात होता है कि मनुष्य की भविष्यकाल पर छाया कितनी लम्बी है इससे उसकी श्रेष्ठता का निर्धारण किया जा सकता है। वैश्विक स्तर पर तीन बड़े नामों सिकन्दर, जूलियस सीजर एवम् नेपोलियन से शिवाजी की तुलना की जाती है। फलश्रुति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शिवाजी अद्वितीय थे।

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