गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वाधान में वन्दे वाणी विनायकौ आदर्श श्रीराम लीला मण्डली के द्वारा स्थानीय लंका के मैदान में लीला के 11वें दिनांक 20 अक्टूबर शाम 7ः00 बजे सुपर्णखा नाक कटईया, खर दूषण वध एवं सीताहरण लीला का मंचन किया गया। लीला की शुरूआत कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल, श्रीराम की आरती करने के बाद लीला का शुभारम्भ किया गया। लीला के दौरान प्रभु श्रीराम चन्द्र अपनी भार्या सीता व भाई लक्ष्मण के साथ चित्रकूट से चलकर पंचवटी में पहुचते है, वहां पर्णकुटी बनाकर निवास करने लगते है अचानक लंका पति रावण की बहन शूपर्णखा भ्रमण करते हुए पंचवटी पहुँचती है और दोनों भाई रामलक्ष्मण को देखकर मोहित हो जाती है वह श्रीराम से अपने विवाह से सम्बन्ध में बात करती है, श्रीराम ने कहा कि मेरा विवाह तो हो गया है तुम चाहो तो मेरे छोटे भाई लक्ष्मण के पास जा करके इस प्रस्ताव को रखो, शूपर्णखा श्रीराम के बात को सुन करके लक्ष्मण के पास जाकर विवाह से सम्बन्धित बात को प्रकट करती है, लक्ष्मण ने भी टाल मटोल करके उसको अपने पास से भगा देते है। इस पर वह क्रोधित होकर सीता जी के ऊपर झपटी सीता जी उसके राक्षसी रूप को देखकर डर जाती है, वहीं लक्ष्मण जी श्रीराम के आज्ञा के इशारा पाकर उसका नाम काट देते है। शूर्पणखा अपने नाक के कट जाने पर रोती बिलखती अपने भाई खरदूषण के पास जाती है। वहाँ जा करके सारी बातों को बता देती है, खरदूषण अपनी बहन की दशा को देखकर श्रीराम लक्ष्मण से युद्ध करने के लिए युद्ध भूमि पर चल देते है। श्रीराम लक्ष्मण खरदूषण को पल भर में ही मार गिराते है, खरदूषण के मारे जाने पर शूपर्णखा रोती बिलखती बड़े भाई लंका नरेश महाराज रावण के पास जाती है और वहाँ पर सारी बातो से अवगत करा देती है, रावण ने बहन शूपर्णखा की बात सुन कर कहा कि खरदूषण के पास तुम नही गयी, अपने भाई रावण के बात को सुन करके शूपर्णखा कहती है मैं पहले खरदूषण के पास ही गयी थी, वे दोनों भाई युद्ध के लिए गये और युद्ध भूमि श्रीराम लक्ष्मण ने मार गिराया। इतना बात सुनते ही रावण क्रोधित होे उठा और पुष्पक विमान से आकाश मार्ग से होते हुए मामा मारीच के पास जाते है और जा करके मामा मारीच से सोेने का हिरन बनकर युद्ध भूमि में चलने को कहतेे है, मामा मारीच रावण के भय से पुष्पक विमान पर सवार होे करके पंचवटी चल देता है, थोडी ही देर में रावण का विमान पंचवटी के पास उतरताहै और मामा मारीच विमान से उतरता है सोने का हिरन बनके जंगलो में भ्रमण करने लगता है, इतने मे सीता जी की दृष्टि सोने के हिरन पर पड़ी और श्रीराम सेे कहती हैं कि हे प्रभु सोने का हिरन जंगल में विचरण कर रहा है, कृपया इसका शिकार कर लाये। इतना सुनतेे ही श्रीराम तरकस बाण उठाये और हिरन के पीछे शिकार करने चल देते है, थोड़ी देर में श्रीराम ने अपने बाण से हिरन पर प्रहार कर दिया, हिरन हा लक्ष्मण करते हुए अपने शरीर को त्याग देता है। सीता जी लक्ष्मण की बात सुन करकेे लक्ष्मण से कहती है कि भइया लक्ष्मण आपके भाई संकट मे पड़े है, आप वहाँ जाये अपने भाई की रक्षा करें। काफी अनुनय विनय के बाद लक्ष्मण जी कूटी के चारों ओर लक्ष्मण रेखा खींच करके सीता जी से कहते है कि भाभी इस रेखा को पार मत कीजियेगा। ये कहते हुए धनुष बाण उठाये और श्रीराम केे रक्षा के लिए जंगल केे लिए चल देते है। थोड़ी देर बाद रावण सुनसान स्थान देखकर कुटिया के पास साधु का वेश बनाकर जाता है, और भीक्षा का गुहार लगाता है, सीता जी आवाज सुनकर कन्द मूल फल थाली में सजाकर ज्यो ही बाहर आती है साधु वेष धारी रावण कहता है कि हे देवी आप रेखा के बाहर आ कर भिक्षा दे तभी मैं भिक्षा लूंगा, सीता ने कहा मैं रेखा के बाहर नही आ सकती, इस पर क्रोधित होकर साधु रूपी रावण श्राप देने को कहता है। सीता जी साधु की बात को सुनकर डर जाती है और रेखा के बाहर ज्यो ही कदम रखती है त्यों ही रावण अपने असली रूप में आकर सीता का हरण कर ले जाता है। इस अवसर पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक विरेश राम वर्मा, उप प्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, मनोज कुमार तिवारी, रामसिंह यादव, विशम्भर नाथ गुप्ता आदि रहे।
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