गाजीपुर। गेहूँ फसल की कटाई हो रही है , कुछ फसल बर्षा के कारण खेत में पडे़ है। किसान भाई कम्बाईन से कटाई करने के बाद खेत में गेहूँ की अवशेषों (पराली) को जला देते है। प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी के निदेशक प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि पराली जलाने से कई नुकसान होते हैं। इससे वायु प्रदूषण बढ़ता है, मिट्टी की उर्वरता कम होती है, और मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। पराली जलाने से कार्बनडाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, और अन्य जहरीली गैसें निकलती है। गैसों के उत्सर्जन से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में तेजी आती है। पराली जलाने से मिट्टी के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे मिट्टी कम उपजाऊ हो जाती है। धुएं से सांस लेने पर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, और फेफड़ों से जुड़ी अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं। धुएं से आंखों और गले में जलन हो सकती है।धुएं के कारण हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे फसल की पैदावार कम होती है। पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीव मर जाते हैं, जिससे कीटों की संख्या बढ़ सकती है और फसलें बीमार हो सकती हैं। खेत के पास आम के फलों में कोयलिया रोग धुआ लगने के कारण हो जाता है। पराली जलाने से किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है, क्योंकि उन्हें अधिक खाद और पानी का उपयोग करना पड़ सकता है। पराली जलाने से आग फैल सकती है, जिससे आसपास की फसलों और आबादी को नुकसान हो सकता है। पराली जलाने से कई तरह के नुकसान होते हैं। इसलिए, किसानों को पराली जलाने के बजाय, उसे खेत में ही दबा देना चाहिए या खाद बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। गेहूँ का भूसा बनाकर पशुओं को खिलाये। गेहूँ के भूसे पर मशरूम का उत्पादन करें। पराली जलाये नही उसका उपयोग कर पर्यावरण सुरक्षित करें।
