गाजीपुर। मैं खंडरावशेष के ऊपर खड़ा हूं, गाज़ीपुर के परागना खानपुर के जौनपुर तथा आजमगढ़ के बार्डर पर स्थित एक मठ है.यह गांव बंझुलिया कहलाता था जो अब सरइयाँ से जाना जाता है. मुझे ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में सुरक्षित रखे हुए दस्तावेजतों एवं अभिलेखों को खंगालते समय इस मठ के बारे मे लिखा मिला कि गोसाईं यति परम्परा की पीठ मठ सरइयाँ मे जश्न यति नामक एक वैरागी आकर प्लाश के जंगल मे एक कुटिया बनाकर रहने लगे. “About four or five hundred years ago, the math at Sarian was established.” उबड़ खाबड़ रास्तों, सकरी पगडनड़ियों एवं सुनसान जंगली रास्तों से होकर पूछता हुआ इस ऐतिहासिक मठ का मुझे दर्शन हुआ. यात्रा बड़ी तकलीफदह थीं, लेकिन इसकी तलाश ने, सफर की थकान को भूल बैठा. मठ के परिसर मे एक शिव मंदिर हैँ जिसके मुख्य द्वार पर स्थित नंदी की मूर्ति बड़ी तथा भव्य है, मंदिर के पत्थरों पर नागर शैली मे बेहद उम्दा नक्कशी एवं बेलबुटे उन्केरे गए हैँ, लाजवाब हैँ. खंडहर होने से बीस वर्ष पूर्व यह मठ दो मंज़िला था. मुख्य द्वार इतने विशाल थे कि जिनमे से कई हाथी आते जाते थे. इसके भीतर दस कमरे थे, जिसके हर तरफ बड़ी बड़ी दालाने थीं. मठ का निर्माण लगभग इक एकड़ मे दो तल्ला खप्रैल, ईंट, सूखे चुने से हुआ था. मध्य हिस्से मे एक बड़ा आंगन, रसोई घर, स्नान घर, महंत यति महाराज का कमरा, अनाज भंडार गृह,श्रद्धालुओं तथा सेवकों के लिए कमरे भी थे. इस मठ के समीप एक विशाल तालाब था, जिसमे महंत यति कभी कभी स्नान भी करने के लिए आते थे. गांव के तथा आसपास के गांव के जो गरीब एवं अनाथ थे, उनके लिए भंडारे कि व्यवस्था भी थीं. महंत उस समय तक नहीं सोते जबतक पूरे गांव का प्रत्येक घर खा न ले। मठ का पूरा रकबा तीन बिगहे मे रहा था. आज भी मठ के खंडरावशेष बड़ी आराज़ी मे फैला हुआ हैँ. इतनी यह ऊँचाई पर है कि मुझे चढने पर बड़ी दिक्कत पेश आई. ऊपर टीले पर मठ के एक महंत धूम यति की समाधी है जिसके आगे, मैं खड़ा हुआ हूं। इस यती गोसाईं संत परंपरा की सिद्धपीठ को धार्मिक अनुष्ठानों के लिए बादशाह अकबर और बादशाह शाहजहां के शासन काल मे हजारों एकड़ कृषि भूमि जो भूमि कर मुक्त थीं, दान में मिली थी.इस मठ की जागीरें 24 मौजो मे थीं। यह अपने समय में हथियाराम मठ और जखनिया मठ से अधिक सरइयाँ का मठ लोकप्रिय था.बस इतना जान लीजिए कि इस पीठ के 14 मठ थे।
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