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ममता, प्रेरणा और समर्पण की प्रतीक थीं स्व . मगनेश्वरी सिंह

गाजीपुर। कर्मयोगी बाबू राजेश्वर प्रसाद सिंह के महायज्ञ की महासमिधा सादगी, समर्पण, और अनुशासन की प्रतीक श्रीमती मगनेश्वरी सिंह का जन्म 15 दिसम्बर 1929 को सकलडीहा कोट के रियासती घराने में हुआ था जिनके आदर्शवादी पिता बाबू मुकुट बिहारी सिंह ने सन 1942 में गांधीजी के भारत छोडो आन्दोलन का सकलडीहा कोट में नेतृत्व किया था| जमींदार खानदान की बेटी और सदैव पिता के आदर्शों का अनुकरण करने वाली मगनेश्वरी सिंह सन 04 जून 1945 में राजेश्वर प्रसाद सिंह से व्याह कर रामपुर आयीं| परन्तु सादगी की प्रतिमूर्ति मग्नेश्वरी सिंह ने अपने आप को परिवार के रंग में पूरी तरह से परिवर्तित कर लिया| सन 1952 में पति राजेश्वर बाबू के साथ वो गाजीपुर में एक लम्बे संयुक्त परिवार में रहने लगीं जहां रिश्तेदारों और परिचितों का निरंतर आना जाना लगा रहता था| अपने अनुशासन और समर्पण से उन्होंने अपने घर को गुरुकुल जैसे माहौल में बदल दिया और उसी दौरान सन 1957 में राजेश्वर बाबू ने पी० जी० कॉलेज गाजीपुर की स्थापना की| कहते हैं ना बिना मजबूत नीव के टिकाऊ महल संभव नही| महल की चमक दमक और नाज-नक्श से तो सभी अभिभूत होते हैं लेकिन वह नीव जो महल का भार ढोती है, उसे आकार प्रकार और टिकाऊ जिन्दगी प्रदान करती है, अक्सर अनजानी रह जाती है, वैसे हीं मगनेश्वरी सिंह का जीवन वाह्य परिदृश्य के इतर समस्त क्षेत्र में एक मजबूत आधार प्रदान करने वाला रहा, जिससे वे “माताजी” के नाम से हीं जानी जाने लगीं| माताजी का जीवन सादगी, त्याग और निष्ठा का प्रतीक था, उन्होंने अपने पति के साथ न केवल घरेलू जीवन का निर्वहन किया,बल्कि उन्हें सामाजिक और राष्ट्रसेवा के कार्यों में भी संबल दिया । उन्होंने  राजेश्वर बाबू के संघर्षपूर्ण जीवन में एक सशक्त साथी की भूमिका निभाई और उनके कार्यों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बनीं। राजेश्वर बाबू का जीवन,शिक्षा के प्रसार और समाज सुधार में समर्पित था,जिसके लिए उन्हें अक्सर अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था,ऐसे में माताजी ने परिवार की जिम्मेदारियाँ अपने कंधों पर उठाई और अपने पति को निःस्वार्थ समर्थन दिया। उनके इस सहयोग और त्याग ने राजेश्वर बाबू को उनके महान कार्यों में योगदान देने की स्वतंत्रता दी। माताजी ने न केवल एक पत्नी का कर्तव्य निभाया,बल्कि समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में अपने पति के विचारों और आदर्शों को समझते हुए उनकी जीवनयात्रा में संबल बनीं। भीषण सूखा के दौरान उनके समर्पण और सहयोग के लिए जनपद उनका सदैव ऋणी रहेगा| उनका धैर्य और समर्थन राजेश्वर बाबू के कार्यों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था और उनके इसी योगदान के कारण राजेश्वर बाबू भारतीय समाज में एक महान व्यक्तित्व के रूप में उभर सके जो गाजीपुर के मालवीय की नाम से भी जाने जाते हैं। माताजी की रूचि मूलतः साहित्यिक और आध्यात्मिक रही और वो पुस्तकों की शौकीन रहीं| फणीश्वर नाथ रेणु और नरेश मेहता की कृतियाँ बहुत पसंद थी तथा हिंदी के साथ साथ बंगाली,कन्नड़,मलयालम और तेलगू भाषा के उपन्यासों में रुचि रही| कॉलेज की लाइब्रेरी से उन्हें बहुत लगाव था और वो अक्सर वहां से पुस्तकें मंगवाकर अध्ययन में अपना समय व्यतीत किया करती थीं| धार्मिक आस्था की कारण रामचरित मानस और गीता पाठ नित्यक्रिया में समाहित थीं| योग द्वारा अप्राप्त की प्राप्ति हेतु आप योगाचार्य परमपूज्य लाहिड़ी महाशय के परमपूज्य  शिष्य  श्री भूपेंद्र नाथ सान्याल महाशय का शिष्यत्व स्वीकार करके निरंतर क्रियायोग द्वारा असीम उर्जा एवं स्फूर्ति का स्वयं में संचार तो करती हीं रहीं साथ हीं संपर्क में आनेवाले सभी लोगों में भी प्रेरणादायिनी ज्योति जगाती रहीं| वह शिक्षा के महत्व को समझते हुए न केवल पुस्तकों तक सीमित रहीं,बल्कि शिक्षा को जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बना दिया। उनके विचारों में शिक्षा का अर्थ केवल अंक प्राप्त करना नहीं, बल्कि एक संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण करना था। उन्होंने हमेशा जोर दिया कि शिक्षा का उद्देश्य समाज को जागरूक और सशक्त बनाना है,ताकि लोग अपनी क्षमताओं का सही उपयोग कर सकें। उनके सहयोग द्वारा स्थापित विद्यालय और शिक्षण संस्थान आज भी उनकी सोच और उनके आदर्शों को जीवित रखे हुए हैं। उन्होंने महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और इसे बढ़ावा देने के लिए अनेक प्रयास किए। उनका मानना था कि एक शिक्षित महिला न केवल अपने परिवार को सशक्त बनाती है,बल्कि पूरे समाज में बदलाव का माध्यम बनती है। माताजी का अनुशाशन आज भी उनके परिवार के साथ साथ महाविद्यालय के शिक्षकों,कर्मचारियों और छात्रों में दिखता है| अपने सदस्यों और और महाविद्यालय के छात्रों की सफलता और तरक्की पर उन्हें सबसे ज्यादा ख़ुशी मिलती थी|  शिक्षकों, कर्मचारियों और छात्रों के  हितों का ध्यान रखना उनकी प्राथमिकता रही और वो सदैव इसके लिए तत्पर रहीं| माताजी की चार संतानों में पुष्पा सिंह, अमिताभ सिंह, अजीत कुमार सिंह एवं संजीव सिंह के साथ एक भरा पूरा परिवार है जो आज उच्च पदों पर आसीन होते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं |माताजी का,  बहन श्रीमती लल्ली सिंह के साथ बिताये 96 वर्ष अपने आप में एक मिसाल है तथा उनका अपने भाइयों स्वo शिव प्रताप सिंह और श्री जिज्ञाशु इंद्र सिंह से भ्रातृत्व प्रेम भी अगाध और सराहनीय था जो आज भाई-बहन के लिए एक  आदर्श है| सादगी,समर्पण और अनुशासन की प्रतीक एवं आजीवन सक्रिय रहने वाली शिक्षित एवं बड़े घर की बेटी से कर्मयोगी राजेश्वर बाबू की जीवन संगिनी मगनेश्वरी सिंह “माताजी” की अविराम यात्रा, 03 नवम्बर 2024 में समस्त जनपदवासियों को अनमोल धरोहर प्रदान कर अमर हो गई| आपकी प्रेरणा और समर्पण भावना के सहयोग स्थापित संस्थाओं के समक्ष या पार्श्व से गुजरना एक विशिष्ट अनुभव देता रहेगा और सदैव आपके माँ के ममतामयी आँचल का आभास दिलाता रहेगा।

 

 

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