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गाजीपुर: सूरन की खेती एवं विभिन्न व्यंजन 

गाजीपुर। सूरन में पर्याप्त मात्रा में कार्बोहाइडे्ट्स , प्रोटीन, फाइबर, विटामिन बी 1, विटामिन बी 6, फोलिक एसिड, बीटा कैरोटीन जैसे पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। बवासीर के अलावा कई अन्य समस्याओं में भी सूरन का सेवन बहुत फायदेमंद  है। सूरन के सेवन से जोड़ो का दर्द कम होता है, क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेशन और दर्द कम करने वाले गुण मौजूद होते हैं. वजन घटाने में है सहायक होने के साथ- साथ, कब्ज, तनाव दूर करता है। इसमें बीटा कैरोटीन, एंटीऑक्सीडेंट इम्यूनिटी को मजबूत करने वाले गुण पाये जाते हैं। दिवाली के दिन लोग बड़े चाव से  सूरन खाते हैं ,ऐसी मान्यता है कि दिवाली पर सूरन की सब्जी खाने से घर में धन की अपार वर्षा होती है. जानकारों की मानें तो सूरन का पेड़ कट जाने के बाद भी दोबारा उग जाता है, इसलिए लोग इसे सुख और समृद्धि से जोड़कर देखते है। प्रो. रवि प्रकाश मौर्य निदेशक प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया ने  बताया कि  प्राकृतिक रूप से उपलब्ध सूरन के  घनकंदों में कैल्शियम आक्जेलेट नामक रसायन पाया जाता है ,जिसके कारण खाने से गले में खुजली होती है,लेकिन वैज्ञानिकों ने नवीन उन्नतिशील किस्मों को विकसित किया है जिसमें कैल्शियम आक्जेलेट की मात्रा कम पाया जाता है।       उन्नत किस्मों में गजेंद्र,कोवुर, संतरागाछी, नरेन्द्र अगात  आदि प्रमुख है।  मार्च से अप्रैल माह रोपण का सही समय है। आधा किग्रा से कम वजन का कंद नही रोपे,पंक्ति से पंक्ति तथा पौधे से पौधे की दूरी आधा- आधा मीटर  रखना चाहिए।घनकंदों को लगाते समय प्रत्येक गड्ढे में 2-3 किग्रा गोबर की सड़ी खाद,18 ग्राम यूरिया, 38 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट, एवं 15 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। 32 से 40 कुन्टल कंद की   प्रति एकड़ में आवश्यकता होती है। पैदावार 320 से 400  कुन्टल तक  प्रति एकड़ की दर से होती है। जो प्रजाति, दूरी ,एवं लगाने के समय पर निर्भर है।7-8 माह में खुदाई के लिए फसल तैयार हो जाती है।अंतः फसल के रुप में लोबिया, भिण्डी ले सकते है। बागीचे में भी इसकी खेती कर सकते है। इससे बनने वाले विभिन्न पौष्टिक खाध्य पदार्थो के बारे में प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य ,अध्यक्ष मानव विकास एवं परिवार अध्ययन आचार्य नरेन्द्र देव कृषि ए्वं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय अयोध्या ने बताया कि सूरन  को छोटे छोटे  टुकड़ों में काट कर तथा उबाल कर   सब्जी या चोखा/भरता बनाया जाता है।उबले  हुए सूरन को चाट मसाला ,नींबू का रस,प्याज और धनिया के साथ मिलाकर एक ताजगी भरी चाट बनाई जा सकती है। इसे टिक्की के रूप में भी प्रयोग कर सकते है। सूरन को कद्दूकस करके घी में भुनकर  दूध,चीनी,के साथ  मेवा आदि डालकर स्वादिष्ट हलवा बनाया जाता है। सूरन को कद्दूकस कर बराबर नाप से लहसुन, हरी मिर्च को कूट कर मिलाए।नमक और खटाई मिला कर धूप में पानी सूखने तक रखें। फिर सरसों का तेल गरम कर गुनगुना होने आचार में मिला दें।एक सप्ताह में तैयार होने पर आहार के साथ खाया जा सकता है। इस प्रकार सूरन  पोषण मूल्य, पारंपरिक चिकित्सा, वजन प्रबंधन, प्रतिरक्षा प्रणाली,में लाभ प्रदान करता है।

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