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बाली सुग्रीव लड़ाई, श्री हनुमान माता सीता मिलन, लंका दहन लीला का हुआ मंचन

गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरि शंकरी की ओर से लीला के 13वें दिन10अक्टूर शाम 7:00 बजे शुक्रवार रामलीला मैदान लंका में बालि सुग्रीव लड़ाई, हनुमान माता सीता मिलन एवं लंका दहन लीला दर्शाया गया। लीला शुरू होने से पहले कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी कोषाध्यक्ष रोहित अग्रवाल ने प्रभु श्री राम की विधिवत आरती पूजन किया। इसके बाद रायबरेली के कलाकारों ने सर्वप्रथम बालि सुग्रीव की लड़ाई से लीला की शुरुआत किया। लीला के क्रम में दर्शाया गया कि बाली द्वारा अपने छोटे भाई सुग्रीव को किन्हीं कारणवश उसके राज्य से निकाल दिया गया था, साथ ही उसके पत्नी रूमा को बलपूर्वक हथिया लिया था। इस कारण सुग्रीव अपने बड़े भाई बालिके भय से हनुमान आदि वानरी सेनाओके साथ ऋष्यमूक पर्वत पर एक गुफा में रहता था। वहां बालि श्राप के कारण नहीं जा सकता था। उधर श्री राम लक्ष्मण सीता की खोज करते हुए ऋष्य पर्वत के पास पहुंचते हैं, तो सुग्रीव ने देखा कि दो वीर पुरुष को अपने कंधे पर धनुष बाण लिए ऋष्य मूक पर्वत की ओर आते देखा। वे उनका भेद लेने के लिए हनुमान जी को भेजते हैं हनुमान जी ब्राह्मण का रूप  धारण करके दो वीर पुरुषों के पास आकर उनका परिचय,तथा उनके आने का प्रयोजन पूछते हैं। श्री राम ने अपना परिचय बताते हुए कहा कि हम दोनों अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण हूं। मैं अपनी पत्नी सीता की खोज में निकला हूं। इतना सुनते ही हनुमान जी अपने असली रूप में आकर श्री राम के चरणों में साष्टांग दंडवत करते हुए क्षमा याचना करते हैं। श्री राम ने हनुमान जी को अपने गले लगा लिया। और उन दोनों भाइयों को अपने राजा सुग्रीव के पास ले जाकर सुग्रीव से श्री राम लक्ष्मण का परिचय बताते हुए उन्होंने सारा बात महाराज सुग्रीव को बता देते हैं और श्री राम से सुग्रीव के दुखो को बताते हैं। श्री राम और सुग्रीव दोनों अग्नि का साक्षी लेकर मित्रता निभाने का वचन लेते हैं। महाराज सुग्रीव ने माता की खोज के लिए नल, नील, अंगद, जामवंत, हनुमान सहित बानरी सेनाओ को सभी दिशाओं में सीता की खोज करने  के लिए आदेश देते हैं। महाराज सुग्रीव की आज्ञा पाकर श्री हनुमान जी सत योजन समुद्र पार करके लंका पहुंचकर सीता जी से अशोक वाटिका में जाकर मिलते हैं। वे भूख लगने पर सीता जी से आज्ञा लेकर रावण के बगीचे में पहुंचते हैं और फल कोखाते हैं। साथ ही वृक्षों को उखाड़ फेकते हैं। रखवाले जब इसका विरोध करते हैं तो  रख वालों को घसीट घसीट कर मारते हैं। अशोक वाटिका में बंदर द्वारा राक्षसों को मारने पीटने की बात सुनकर रावण ने मेघनाथ को भेजा । मेघनाथ ने हनुमान जी को ब्रह्मास्त्रका आह्वान करके हनुमान जी को बांध देता है। इसके पूर्व ब्रह्मास्त्र को देखकर हनुमान जी मन में सोचते हैं किअगर ब्रह्मांस्त्र से नहीं बांधा जाऊंगा तो ब्रह्मा जी की महिमा घट सकती है इस कारण हनुमान जी अपने आप को ब्रह्मास्त्र से बंध जाते हैं। कहते हैं कि ब्रह्मस्त्र तेहि साधा कपि मन कीन्ह  विचार। जौ न ब्रह्म सर मानहूं महिमा मिटहि अपार। हनुमान जी ने ब्रह्मास्त्र को देखकर हाथ जोडे खड़े होकर मेघनाथ के भूतों द्वारा आप को बंधवाते हैं। मेघनाथ हनुमान जी को लेकर रावण के दरबार ले जाता है। रावण ने अपने दूतों के द्वारा हनुमान जी बंधन में देखा और अपने दूतों को आदेश देकर हनुमान जी के पूंछ में आग लगा देने का आदेश देता है रावण के आजा अनुसार दूतों ने हनुमान जी की पूछ में आग लगा देते हैं। आग लगते ही हनुमान जी आकाश मार्ग से उड़ते हुए पूरे लंका नगरी को जला दिया। इस मौके पर कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उप मंत्री लवकुमार त्रिवेदी, मेला प्रबंधक मनोज कुमार तिवारी मेला उप प्रबंधक मयंक तिवारी कोषाध्यक्ष बाबू रोहितअग्रवाल, कृष्णाशं, रोहित पटेल, आदि रहे।

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