गाजीपुर। अति प्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी की ओर से नगर के मुहल्ला हरिशंकरी स्थित श्रीराम चबूतरा पर लीला के दूसरे दिन 29 सितम्बर रविवार की शाम 7:00 बजे वंदे वाणी विनायकौ आदर्श श्रीराम लीला मण्डल के कलाकारो द्वारा मुनि आगमन, ताडका वध तथा श्रीराम सीता मिलन प्रसंग मंचित हुआ। कमेटी के मंत्री ओमप्रकाश तिवारी उर्फ बच्चा, उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक मनोज कुमार तिवारी उप प्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल द्वारा आरती पूजन करने के बाद लीला का शुरूआत किया गया। लीला में दर्शाया गया कि ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने आश्रम पर यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे थे कि यज्ञ में असुरो द्वारा विघ्न डाला जा रहा था। असुरो से परेशान होकर ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिए महाराज दशरथ से मिलने अयोध्या पहुँचते है। वहाँ पहुँचे तो महाराज दशरथ को ब्रम्हर्षि विश्वामित्र केे आगमन की सूचना द्वारपालो द्वारा मिलती है। वे सूचना पाकर विप्र वृन्द के साथ ब्रम्हर्षि विश्वामित्र को सम्मान के साथ अपने राज दरबार में ले जा करके स्वागत किया तथा उनके आने का प्रयोजन पूछा। राजा दशरथ के वाणी को सुन करके ब्रम्हर्षि विश्वामित्र ने कहा कि असुर समूह सतावहि मोेहि मैं आयऊ नृप जांचन तोहि.. महाराज मेरे अनुष्ठान में असुरो द्वारा विघ्न डाला जा रहा है। मैं आपके पास श्रीराम लक्ष्मण को यज्ञ की रक्षा के लिए मांगने आया हूँ। जिससे हमारे यज्ञ की रक्षा हो सकें। ब्रम्हर्षि विश्वामित्र के बात को सुनकर महाराज दशरथ ने श्रीराम लक्ष्मण को देने से इंकार कर दिया। राजा के इंकार को सुनकर ब्रम्हर्षि विश्वामित्र क्रोधित हो उठे। उनके क्रोध को देखकर महाराज दशरथ केे कुल गुरू महर्षि वशिष्ठ ने अनेको प्रकार सेे महाराज दशरथ को समझाया और कहा कि हे राजन आप राम लक्ष्मण को ब्रम्हर्षि के हवाले कर दीजिए, इसी में भलाई है। गुरूदेव की आज्ञा पाकर महाराज दशरथ ने अपने दोनो पुत्रों राम लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ यज्ञ की रक्षा के लिए भेज देते है। ब्रम्हर्षि विश्वामित्र राम लक्ष्मण को लेकर अयोध्या से अपने आश्रम के लिए चल देते है। रास्ते में श्री राम ने शिला देखी। उन्होने शिला के बारे में गुरूदेव से पूछा। गुरूदेव विश्वामित्र ने बताया कि हे राम यह शीला गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का है जिसे किसी क़ारणवश गौतम ऋषि ने अपने पत्नी को श्राप देकर शिला बना दिया हे राम ऋषि पत्नी अहिल्या आपके चरण रज को चाहती है। जिसे सुनने के बाद श्रीराम ने उक्त शिला को अपने चरणों से स्पर्श किया। श्रीराम के चरण स्पर्श होते ही शिला नारी के रूप में परिवर्तित हो गयी। आगे थोड़ी दूर जंगल में पहुँचने पर श्रीराम ने पद चिन्ह को देखा। उन्होंने पुनः ब्रम्हर्षि विश्वामित्र से पदचिन्ह के बारे में जानना चाहा, श्रीराम के आग्रह पर विश्वामित्र ने बताया कि हे राम यह पद चिन्ह राक्षसी ताड़का का है, इतना कहने के बाद उन्होंने श्रीराम सेे ताडका का वध करने का इशारा किया। गुरूदेव के इशारा पर श्रीराम ने अपने बाण से ताडका का वध कर दिया। कुछ दिन बीतने के बाद श्रीराम लक्ष्मण ब्रम्हर्षि के आश्रम पर रहने लगे, उधर बाद महाराज जनक द्वारा जनकपुर में स्वयम्बर रचाया गया था जिसमें ब्रम्हर्षि विश्वामित्र को निमंत्रित किया गया था। निमंत्रण पाकर ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने दोनो चेलो श्रीराम व लक्ष्मण के साथ जनकपुर के लिए प्रस्थान कर देते है। महाराज जनक जब ब्रम्हर्षि विश्वामित्र के आने की सूचना पाते है तो वे विप्र वृन्द के साथ उनका स्वागत करने के लिए गेट पर आकर उन्हे एक सुन्दर आश्रम में विश्राम करने का निवेदन किया। ब्रम्हर्षि विश्वामित्र अपने दोनो चेलो के साथ आश्रम पर विश्राम करने लगे। दूसरे दिन गुरू विश्वामित्र के पूजा हेतु पुष्प वाटिका में पुष्प लेने के लिए राम लक्ष्मण पहुँचते है। किन्ही कारणवश उसी पुष्प वाटिका में सीता जी भी सखियो के साथ पहुँचती है, जहाँ श्रीसीता राम का मिलन होता है। इस मिलन को देखकर दर्शक भाव विभोर हो गये। इस अवसर पर अतिप्राचीन रामलीला कमेटी केे मंत्री ओमप्रकाश तिवारी, उपमंत्री लवकुमार त्रिवेदी, प्रबन्धक मनोज कुमार तिवारी, उपप्रबन्धक मयंक तिवारी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, वरूण अग्रवाल, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी, राजकुमार शर्मा उर्फ छोटे आदि उपस्थित रहे।
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