गाजीपुर। अध्यात्म जगत में ख्यातिलब्ध सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 25वें ब्रह्मलीन महंत महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यति का 12वां निर्वाण दिवस गुरुवार को श्रद्धाभाव से मनाया गया। गौदान, शिवोपासना और समाधि पूजन के साथ ही भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें शामिल होने वाले श्रद्धालुओं ने संतो और विद्वतजनों के सद्विचारों संग महाप्रसाद ग्रहण किया। सिद्धपीठ के पीठाधिपति महामंडलेश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति महाराज ने यजमान रणजीत सिंह के परिजनों के साथ वैदिक मंत्रोच्चार के बीच सिद्धेश्वर महादेव मंदिर में शिवोपार्चन किया। तत्पश्चात समाधि पूजन और यजमान परिवार ने गौदान किया। ज्ञातव्य हो कि परम पूज्य ब्रह्मलीन महंत पवाहारी स्वामी बालकृष्ण यति महाराज का वाराणसी के जागेश्वर आश्रम में श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि पर 27 जुलाई 2013 को तिरोधान हुआ था। वह करीब 900 वर्ष प्राचीन सिद्ध संतो की तपोस्थली सिद्धपीठ हथियाराम मठ के 25वें महंत रहे। उनका आविर्भाव (जन्म) हिमालय के कूर्मांचल भूमि पर स्थित अल्मोड़ा के जोशी गांव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा, उज्जैन, मिर्जापुर और वाराणसी में हुई थी। संपूर्णानंद संस्कृत महाविद्यालय वाराणसी द्वारा उन्हें वेदांताचार्य की उपाधि से विभूषित किया गया था। स्वामी बालकृष्ण यति महाराज ने सन्यास ग्रहण कर नर्मदा तट एवं हिमालय में साधना किया। अट्ठाईस वर्षों तक फलाहार करते हुए उन्होंने तप साधना किया था। बाल्यकाल से ही अलौकिक प्रतिभा के धनी स्वामी बालकृष्ण यति ने कठिन साधना, हठयोग, समाधि तथा तपस्या से अध्यात्म जगत में महत्वपूर्ण स्थान बनाया था। हरिद्वार के ज्वालापुर में शंकर आश्रम, इंदौर में विश्वनाथ धाम, हल्द्वानी में महालक्ष्मी अष्टादास का विख्यात मंदिर, वाराणसी , बलिया, मऊ के साथ ही हरियाणा, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, बिहार आदि प्रांतों व विदेशों में बड़ी संख्या में शिष्य हैं। धर्माध संदेश को लेकर उन्होंने कई बार विदेश दौरा भी किया था। नवरात्रि महोत्सव, शिवरात्रि महोत्सव तथा चातुर्मास महायज्ञ आदि को वह काफी महत्व देते थे। इस पीठ पर आसीन होने वाले संत यति सन्यासी कहे जाते हैं। इस गद्दी की परंपरा दत्तात्रेय, शुकदेव तथा शंकराचार्य से प्रारंभ होती है। मठ का प्रमाण सामान्य जनश्रुति, प्राचीन हस्तलिपि, लिखित पुस्तक तथा भारतीय इतिहास में मिलता है। श्रीसिंह श्याम यति से इस पीठ की संत परंपरा प्रारंभ हुई थी। उन्होंने धर्म प्रचार के साथ अनेक शिक्षण संस्थाए भी संचालित किया था, जो आज वर्तमान पीठाधिपति महामंडलेश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति महाराज के संरक्षण में भव्य तरीके से पुष्पित पल्लवित होकर जनकल्याण में सहायक साबित सिद्ध हो रहा है। निर्वाण दिवस कार्यक्रम में उपस्थितजनों को संबोधित करते हुए पीठाधिपति महामंडलेश्वर स्वामी भवानी नन्दन यति महाराज ने कहा कि जीवन में ईश्वर, माता पिता और गुरू का ऋण होता है, जिससे मुक्त होना जरूरी है। उन्होंने अर्पण, तर्पण और समर्पण का अर्थ बताते हुए प्रत्येक व्यक्ति को इन तीन बातों को आत्मसात करने की प्रेरणा दिया। व्यास डा. मंगला सिंह, यजमान रणजीत सिंह, प्राचार्य डॉ. रत्नाकर त्रिपाठी, शिक्षिका डा. अमिता दूबे, कथावाचक अमरजीत जी ने विचार व्यक्त करते हुए गुरू की महिमा का बखान किया। साथ ही कन्या महाविद्यालय की छात्राओं ने गीता पाठ और देवी गीत प्रस्तुत किया। यजमान परिवार ने वैदिक ब्राह्मणों के साथ ही कन्या महाविद्यालय हथियाराम की शिक्षिकाओं संग छात्राओं को चंदन टीका लगाकर वस्त्र, द्रव्य आदि भेंट किया। अंत में पुण्य लाभ की कामना के साथ भंडारे से महाप्रसाद ग्रहण कर लोग अपने घर लौटे। इस अवसर पर आचार्य विनोद उपाध्याय, संत देवरहा बाबा बिरनो, भुड़कुड़ा कोतवाल तारावती देवी, डा. रत्नाकर त्रिपाठी, गोपाल सिंह, सर्वजीत सिंह, रणजीत सिंह, राजकमल सिंह, सौरभ, राघवेंद्र सिंह, अभिषेक, रुक्मणि देवी, चंद्रकला, पूनम, दीपिका सिंह उर्फ दीपू, अमिता दूबे, नीलम दूबे, शिवानंद सिंह झुन्ना, लौटू प्रजापति, चंद्रशेखर सिंह, अरविन्द गुप्ता, सुधीर आदि के साथ ही महाविद्यालय की शिक्षिकाए और गणमान्यजन मौजूद रहे।