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गायत्री महायज्ञ में 200 बच्चों का हुआ विद्यारंभ संस्कार एवं 500 परिवारों ने ली गायत्री परिवार से दीक्षा

गाजीपुर।  जमानिया के डिगरी नहर पुलिया के पास चल रहे 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के अंतिम दिन हजारों श्रद्धालुओं ने अपने मन,वचन व कर्म के शुद्धिकरण के लिए यज्ञ में आहुतियां समर्पित किए।यज्ञ के दौरान 200 बच्चों का विद्यारंभ संस्कार कराया गया, तथा यज्ञ के समापन के बाद सायं कालीन 5000 दीपकों से विराट दीपयज्ञ का आयोजन भी किया गया। विराट दीप महायज्ञ के मनोहर एवं आध्यात्मिक वातावरण से आच्छादित पूरा जमानिया देर रात तक भक्तिमय बना रहा। यज्ञ से श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण गायत्री यज्ञ के महिमा पर प्रकाश डालते हुए टोली नायक राम तपस्या यादव ने कहा कि “गायत्री को देव संस्कृति की माता और यज्ञ को मानवीय धर्म का पिता कहा गया है। प्रक्रिया के दृष्टि से यज्ञ मनोवैज्ञानिक शिक्षण की सशक्त विधि है, जिसके द्वारा परोक्ष किंतु स्थाई प्रभाव मन पर पड़ता है व सुसंस्कारों का बीजारोपण होता है ।यह मात्र क्रिया कृत्य नहीं वरन अंतःकरण में श्रेष्ठ संस्कारों की स्थापना की एक सफल मनोवैज्ञानिक विधि है। गायत्री जप से श्रेष्ठताओं और सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन गायत्री के एक-एक अक्षर को साक्षात् देव स्वरूप में व्याख्या करते हुए मुख्य प्रबंध ट्रस्टी सुरेंद्र सिंह ने कहा कि “गायत्री के 24 अक्षरों में एक देवता का वास है। इन 24 अक्षरों में 24 ऋषियों का भी समावेश है ।देव शक्तियों विभूतियों का प्रतीक है और ऋषि शक्तियां श्रेष्ठाओं और सत्त्प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। गायत्री का जाप करने से विभूतियां एवं श्रेष्ठाएं दोनों सहज रूप से हर मनुष्य को प्राप्त होती है”। नौनिहालों को संस्कार-परक शिक्षा दी जाए विद्यारंभ संस्कार के महत्व को बताते हुए उन्होंने कहा की राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति का चक्र चलाने के लिए प्रखर तेजस्वी व्यक्तियों की बड़ी जरूरत है। यह तभी संभव होगा ,जब बाल्यावस्था से ही भावी पीढ़ी के नौनिहालों को संस्कार -परक शिक्षा दी जाए।  एक बुराई त्यागने और एक अच्छाई ग्रहण करने का लिया संकल्प विराट दीपयज्ञ के माध्यम से कार्यक्रम आयोजक अंशुमान जायसवाल एवं जिला युवा प्रभारी क्षितिज श्रीवास्तव ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि “युवाओं को आधुनिकता पाश्चात्य सभ्यता विदेशी भाषाओं और जीवन मूल्यों के अच्छे तत्वों को ग्रहण करना तो ठीक है किंतु उसके आगे नतमस्तक होना उचित नहीं है। अपनी सभ्यता,संस्कृति,राष्ट्र,धर्म और भाषा हमारी पहचान है,उन्हें हमारे रक्त में बहते रहना चाहिए।हमारे हृदय में धड़कते रहना चाहिए। अपने सुसंस्कारों एवं चरित्र की प्रमाणिकता के आधार पर युवाओं को राष्ट्रीय विकास में अहम योगदान करना है। कार्यक्रम के दौरान सभी श्रद्धालुओं ने हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर एक बुराई को त्यागने और एक अच्छाई को ग्रहण करने का संकल्प लिया।कार्यक्रम को सफल बनाने में जयशंकर श्रीवास्तव,ओम नारायण राय, शिव शंकर शर्मा,दीनानाथ शर्मा, मदन मोहन शर्मा,प्रसून दुबे, नीतिश जयसवाल,अनिल सिंह व रोली सिंह का सहयोग रहा।

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