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हिन्दी आलोचना का वास्तविक रूप भारतेन्दु युग से आरम्भ हुआ और आज तक जारी है- यशवंत सिंह वर्मा

गाजीपुर। पी०जी० कालेज गाजीपुर में पूर्व शोध प्रबन्ध प्रस्तुत  संगोष्ठी का आयोजन किया गया। यह संगोष्ठी महाविद्यालय के अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ तथा विभागीय शोध समिति के तत्वावधान में महाविद्यालय के सेमिनार हाल में सम्पन्न हुई, जिसमें महाविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी व छात्र- छात्राएं उपस्थित रहे। उक्त संगोष्ठी मे भाषा संकाय के हिंदी विषय के शोधार्थी यशवंत सिंह वर्मा  ने अपने शोध  शीर्षक “हिंदी आलोचना के बढ़ते चरण और दलित साहित्य का मूल्यांकन”  नामक विषय पर शोध प्रबन्ध व उसकी विषय वस्तु प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिन्दी आलोचना की पृष्ठभूमि संस्कृत काव्यशास्त्र के विकास में अवस्थित है। हिन्दी आलोचना का वास्तविक रूप भारतेन्दु युग से आरम्भ होकर द्विवेदी युग में पुष्ट होता है। द्विवेदी युग की प्रतिक्रिया में छायावाद का जन्म हुआ, इस क्रम में वर्तमान समय मे भी आलोचना पर कार्य हो रहा है। दलित साहित्य की संवेदना हिन्दी साहित्य की परम्परागत संवेदना से नितान्त भिन्न है दलित साहित्य का आधार स्तम्भ अंबेडकर चिंतन तथा दर्शन है, जिसमें समाज उत्थान तथा समानाधिकार की बात पर जोर, जातिवाद का उन्मूलन, नारी शिक्षा, अन्तर्जातीय विवाह की चर्चा आदि पर बहुत गम्भीर चिंतन एवं बहस है। अंबेडकर द्वारा लिखित ‘कास्टपन इंडिया -देयर मैकेनिज्म’, ‘जेनेसिस एण्ड डेवलपमेंट’ (1916) से लेकर ‘बुद्ध एण्ड हिज धम्म'(1956) तक उनके विचारधारा के दर्शन ही दलित साहित्य एवं हिन्दी दलित आलोचना के केन्द्र बिंदु में गरजते-बरसते नजर आते हैं। प्रस्तुतिकरण के बाद विभागीय शोध समिति,अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ व प्राध्यापकों तथा शोध छात्र-छात्राओं द्वारा शोध पर विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछे गए, जिनका शोधार्थी यशवंत सिंह वर्मा ने संतुष्टिपूर्ण एवं उचित उत्तर दिया। तत्पश्चात समिति के चेयरमैन एवं महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे० (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबन्ध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान किया। इस संगोष्ठी में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफे०  (डॉ०) राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय, अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह , मुख्य नियंता प्रोफेसर (डॉ०) एस० डी० सिंह परिहार, शोध निर्देशक  डॉ० संजय चतुर्वेदी एवं हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफे० (डॉ०) विनय कुमार दुबे, डॉ० संजय कुमार सुमन, डॉ० योगेश कुमार,डॉ० समरेंद्र नारायण मिश्र, डॉ० धर्मेंद्र निषाद, डॉ० मनोज कुमार मिश्र, डॉ० भोलेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ० अतुल कुमार सिंह एवं महाविद्यालय के प्राध्यापकगण तथा शोध छात्र-छात्रएं आदि उपस्थित रहे। अंत में अनुसंधान एवं विकास प्रोकोष्ठ के संयोजक प्रोफे० (डॉ०) जी० सिंह ने  सभी का आभार व्यक्त किया।

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