गाजीपुर। आम के बाग में सबसे अधिक ध्यान बौर लगते समय रखना चाहिए, इन्हीं एक-दो महीने में बाग की देख-रेख करके किसान अच्छा उत्पादन पा सकते हैं। फरवरी-मार्च के महीने में आम के बाग में खास देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि इस समय पेड़ में बौर (मंजरी) लगते हैं, जिसकी वजह से कई तरह के कीट-रोगों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, इसलिए समय रहते कुछ बातों का ध्यान रखकर किसान इस नुकसान से बच सकता है। पिछले कुछ दिनों में मौसम के बदलाव से कीट-रोगों को बढ़ने का वातावरण मिल जाता है। प्रसार्ड मल्हनी भाटपार रानी देवरिया के निदेशक डॉ. रवि प्रकाश म़ौर्य कहते हैं, “इस समय के तापमान में आम के बौर पर पाउडरी मिल्ड्यू जिसे खर्रा या दहिया रोग भी कहते हैं, के लगने की संभावना बढ़ जाती है। गुझिया कीट भी बढ़ने लगते हैं। इनके साथ ही बाग में भुनगा, पुष्पगुच्छ मिज और बौर का झुलसा रोग भी लग सकता है। इसलिए इन रोग और कीटों से बचने के लिए बाग में सही प्रबंधन कराना जरूरी हो जाता है। आम के बाग की समय-समय पर निगरानी करते रहना चाहिए कि कहीं पर कोई रोग-कीट लगे तो तुरन्त निदान करें।
आम में पाउडरी मिल्ड्यू (खर्रा/दहिया) रोग-
खर्रा रोग एक कवक से होने वाली बीमारी होती है। इस रोग के लक्षण बौरों, पुष्पक्रम के डंठल, नई पत्तियों और फल आने के बाद फलों पर सफेद पाउडर के रूप में दिखायी देते हैं। इसके प्रभाव में फूल खिल नहीं पाते और गिरने लगते हैं, जिससे उत्पादन पर असर पड़ता है। आम के बाग में इस समय इसका प्रकोप बढ़ने लगता है, क्योंकि तापमान बढ़ने के साथ ही इन्हें भी बढ़ने का वातावरण मिल जाता है। इनसे बचने के लिए किसानों को घुलनशील गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर या हेक्साकोनाजोल के 1 मिली को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
आम के गुजिया कीट –
आम की बाग में जनवरी से लेकर मार्च के महीने तक जमीन से गुजिया कीट निकलकर पेड़ों पर चढ़ जाता हैं। इन कीटों की अधिक संख्या से नुकसान हो जाता है,, क्योंकि ये कीट पेड़ पर चढ़कर पत्तियों और बौर का रस चूस कर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं। प्रति बौर कीट की ज्यादा संख्या होने से फल भी नहीं बन पाते हैं। यही नहीं इन कीटों की वजह से पत्तियों और बौर चिपचिपा पदार्थ बढ़ता है, जिससे फफूंद की बढ़ने लगते हैं। अगर ये कीट पत्तियों और बौर पर दिखायी दें तो इनके प्रबंधन के लिए कार्बोसल्फान 25 ईसी का दो मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
भुनगा कीट-
आम का भुनगा एक खतरनाक कीट होता है, जो आम की फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। यह बौर कलियों और मुलायम पत्तियों पर एक-एक कर अंडे देते हैं और शिशु अंडे से एक हफ्ते में बाहर आ जाते हैं। बाहर आने पर शिशु और वयस्क कीट आम के बौर, पत्तियों और फलों के मुलायम हिस्सों से रस चूस लेते हैं। इससे बौर नष्ट हो जाते हैं।बाद में फल भी गिरने लगते हैं। भुनगा एक मीठा और चिपचिपा द्रव्य भी निकालते हैं, जिस पर काली फफूंदी (सूटी मोल्ड) लग जाती है, काली फफूंद के लगने से पत्तियों में प्रकाश संष्लेशण की प्रक्रिया रुक जाती है। वैसे तो साल भर भुनगा कीट आम के बाग में दिखते हैं, लेकिन फरवरी से अप्रैल के बीच इनका प्रकोप कुछ ज्यादा ही बढ़ जाता है।तापमान बढ़ने के साथ ही कीट की बढ़ने की संभावना भी बढ़ जाती है, अगर इस समय आपके बाग में भुनगा कीट का प्रकोप दिखाई दे तो जल्द ही इमिडाक्लोप्रिड (0.3 मिली प्रति लीटर पानी) और साथ में स्टिकर मिलाकर (एक मिली प्रति लीटर पानी) छिड़काव करें।
पुष्प गुच्छ मिज कीट-
आम का पुष्प गुच्छ मिज एक नुकसानदायक कीट होता है, जो गंभीर अवस्था में आम की फसल को नुकसान पहुंचाता है। मिज कीट का प्रकोप वैसे तो जनवरी महीने के आखिर से जुलाई महीने तक कोमल तनों और पत्तियों पर होता है, लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान बौर और छोटे फलों को पहुंचाते हैं। इस कीट के लक्षण बौर के डंठल, पत्तियों के शिराओं या तने पर कत्थई या काले धब्बे के रूप में दिखायी देते हैं। धब्बे के बीच में छोटा सा छेद होता है। प्रभावित बौर व पत्तियों का आकार टेढ़ा-मेढ़ा हो जाता है। प्रभावित स्थान के आगे के बौर सूख भी सकता है। कुछ बागों में इस समय पुष्पगुच्छ मिज दिखने लगा है और विकसित हो रहे पुष्पगुच्छो को नुकसान पहुंचाने लगे हैं। किसानों को सलाह दी जाती है कि इस कीट के नियंत्रण के लिए डासमेथोएट (30 प्रतिशत सक्रिय तत्व) 2.0 मिली प्रति लीटर पानी या बाइफ्रेंथ्रीन 0.7 मिली प्रति लीटर पानी की दर से स्टिकर (1 मिली प्रति लीटर पानी) के साथ छिड़काव करें।
बौर का झुलसा रोग-
बौर के बढ़ने के समय फफूंदी के संक्रमण फूलों और अविकसित फल झड़ने लगते हैं। इस रोग का प्रकोप हवा में 80 प्रतिशत आर्द्रता या फिर बारिश होने से नमी बढ़ने के अधिक होता है। इसका लक्षण दिखायी देने पर मेन्कोजेब+कार्बेन्डाजिम के 0.2 % घोल (2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए।