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जनपद गाजीपुर की पांडिलिपियों की कोई सुध लेने वाला नही- उबैदुर्रहमान सिद्दीकी

गाजीपुर। साहित्‍यकार उबैदुर्रहमान सिद्दीकी ने बताया कि अपनी आगामी अंग्रेजी पुस्तक “Ghazipur A Journey Through Political & Cultural History From Ancient Period To Pre Independence” को लिखते समय अनेक संस्कृत, उर्दू एवम् फ़ारसी पांडुलिपियों को देखा है, जो ऐसे ही जनपद के अलग अलग क्षेत्रों में पड़ी हैं. गांव गौसपुर में एक बहुमूल्य गाजीपुर के इतिहास पर संस्कृत पांडुलिपि स्थानीय ज्यूत बंधन सिंह के पास 1712 ईस्वी लिखित है, इसके अतिरिक्त अनेक हिंदी, फारसी उर्दू की पांडुलिपिया जांगीपुर, चौकिया, मखदूमपुर , नोनहरा पारा, शहर के ओरिएंटल कालेज मदरसा चशमय रहमत ( 50 से ऊपर ) बिखरी पड़ी है जिनका कोई सुध लेने वाला नही है। जबकि जनपद की अनेक साहित्यिक, धार्मिक, ऐतिहासिक पांडुलिपियां रामपुर रजा लाइब्रेरी, नेशनल आर्काइव दिल्ली, रघुबीर लाइब्रेरी जयपुर आर्काइव, खुदा बक्श लाइब्रेरी पटना, स्टेट आर्काइव लखनऊ, रीजनल आर्काइव प्रयाग राज के अलावा शहर में ब्रिटिश शासन में एक स्पेशल सेल खोला गया था जिसमे कोई भी जनपद वासी अपने कीमती कागजात, चीज़ें, पांडुलिपि आदि बेच सकता था जिन्हे गाजीपुर कलेक्टर विलियम इर्विन 1885 में लंदन वापस जाते समय उठा ले गया और मरने से पहले उन्हें इंडिया ऑफिस लंदन को दे दिया जो आज ब्रिटिश लाइब्रेरी तथा संग्रहालय में सुरक्षित है जिनका कैटलॉग नंबर 4047 है. इसके अलावा  उसके पूर्व गाजीपुर का कलक्टर विल्टन ओल्धम जिसने गाजीपुर के इतिहास दो खंडों में गाजीपुर मेमोयर्स नामी पुस्तके लिखते समय जनपद से अनेक पांडुलिपियों को एकत्रित किया जिन्हे मिश्र बाजार में स्थित अपने संग्रहालय एवं पुस्तकालय ओलधम लाइब्रेरी को समर्पित कर दिया था लेकिन अब वे बेशकीमती अप्रकाशित कागजात कहा है, मुझे नहीं मालूम है। मेरे पास 1692 से लेकर 1900 तक की गाजीपुर मे लिखित कुछ अभिलेख है जो यहाँ के इतिहास तथा साहित्य पर है.  उनमें प्रमुख जनपद सय्यदों से संबंधित वंशावली जिसमे 1325 से 1835 तक की घटनाएं दर्ज है जिसको 1692 में लिखा गया था। यहां दर्शन, साहित्य, व्याकरण, इतिहास आदि सभी क्षेत्रों में विशाल संस्कृत साहित्य रचा गया। इस विशाल साहित्य से प्रभावित होकर संस्कृत ग्रंथो का फारसी भाषा में अनुवाद हुआ। जहूराबाद के निवासी सैयद शाह मुहम्मद गौस ( जन्म 1500 ) समाधि ग्वालियर, की लिखित अनेक संस्कृत से अनूदित फारसी की पांडुलिपियां बिखरी पड़ी है जिन्हे शोध संस्थानों ने हाल में प्रकाशित किया है और कुछ मूल वैसी ही पड़ी हैं जो पटना और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में सुरक्षित है. उनमें एक अमृतकंद है। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में पांडुलिपियों का एक विशाल संग्रह उपलब्ध है जिसमें संस्कृत की लगभग 600 पांडुलिपियां हैं जिनका कैटलॉग प्रकाशित हो चुका है। इसमें संस्कृत से फारसी अनुवादित पांडुलिपियों भी समाहित हैं।

कुछ फारसी अनुवादित पांडुलिपियों का विवरण निम्न है–

1- योग वशिष्ठ —

संस्कृत साहित्य में अद्वैत वेदान्त का अति महत्वपूर्ण ग्रंथ योग वशिष्ठ है। आदिकवि वाल्मीकि योग वशिष्ठ के रचयिता हैं। इसमें रामायण से लगभग चार हज़ार श्लोक अधिक होने के कारण इसका नाम महारमायण है। इसमें श्लोकों की संख्या 27687 हैं। इस ग्रंथ में राम का जीवन परिचय नहीं हैं अपितु महर्षि वशिष्ठ द्वारा दिये गए आध्यात्मिक उपदेश है। संपूर्ण ग्रंथ में छह प्रकरण हैं – वैरायग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्पति प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपराम प्रकरण, निवारण प्रकरण।

पांडुलिपि संख्या – 4351

योगवशिष्ठ का फ़ारसी अनुवाद ‘ रश्के बहिश्त ‘ नाम से  हुआ था। ‘ रश्के बहिश्त ‘ पद्य में है। मक्खन लाल तमन्ना ने 1240 हिजरी/1824-25 ई० में किया था। इमाम बख़्श इस पांडुलिपि के कातिब हैं।

2- भागवत पुराण–

इसे श्रीमदभागवतम या केवल भागवतम भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य-विषय भक्ति योग्य है जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। भागवत में महर्षि सूत गोस्वामी एक कथा सुनाते हैं जिसमें विष्णु के विभिन्न अवतारों का वर्णन किया गया हैं। इसमें 12 स्कन्ध हैं।

पांडुलिपि संख्या – 4223

भागवत पुराण के फारसी अनुवाद का नाम भी भागवत हैं इसके फ़ारसी अनुवाद का समय 1148 हिजरी/1735-36 ई० है। फारसी अनुवाद में 10 स्कन्ध हैं। 499 पृष्ठ की पांडुलिपि है। इसके अनुवादक प्राणनाथ तथा उनकी उपाधि ‘ राय ‘ है। ये उपाधि उन्हें शाह आलम द्वारा दी गई थी। इस पांडुलिपि का समय 1793 विक्रम संवत है।

  1. भगवद्गीता-

भगवद्गीता महाभारत के भीष्मपर्व से उद्धृत है। इसमें  700 श्लोक हैं। कुरुक्षेत्र की भूमि में अर्जुन को श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था वही उद्धृत है।

पांडुलिपि संख्या – 4229

इसका फारसी अनुवाद शेख फैज़ी ने 1005 हिजरी/1596-97 सन् में किया था।

4.राजतरंगिणी –

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में राजतरंगिणी की जो पांडुलिपि उपलब्ध है वह राजतरंगिणी नहीं है अपितु ‘ तारीखे कश्मीर ‘ नाम से है। इस पांडुलिपि में कश्मीरी स्कॉलर डॉ॰ रसूल खान का नोट लगा है कि ये राजतरंगिणी नहीं है क्योंकि इसमें तारीखे औरंगजेब तक बयान की गई हैं जो कि राजतरंगिणी का अंश नहीं है।

पांडुलिपि संख्या -2136

राजतरंगिणी का फारसी अनुवाद मुल्ला शाह मुहम्मद ने किया था। इस पांडुलिपि में उनका नाम नहीं है।

5- लीलावती –

लीलावती गणित शास्त्र का ग्रन्थ है।  यह भास्कराचार्य द्वारा रचित है तथा इसमें 13 अध्याय हैं। इसका रचनाकाल 1150 ई० एवं 625 श्लोकों में निबद्ध है। इस ग्रन्थ में अंकगणित, बीजगणित, एवं ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं।

लीलावती की तीन पांडुलिपियाँ रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के संग्रह में हैं।

 

क) पांडुलिपि संख्या -1229

मुगल शासक अकबर के आदेश पर लीलावती का फ़ारसी अनुवाद फैज़ी ने 995 हिजरी/1548-49 सन् में किया था।

ख) पांडुलिपि संख्या- 1230

यह गद्य में है। इसके अनुवाद का समय 1247 हिजरी/1831-32 ई० है तथा अनुवादक अमानत अली खां हैं।

ग) पांडुलिपि संख्या- 913 ब

लीलावती की तृतीय पांडुलिपि में अन्य पत्रिकाएं भी सम्मिलित हैं जिनका प्रारम्भ जवाहर खम्सा मय रसायल इल्मे जफर से है। रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में लीलावती छपी हुई भी उपलब्ध है जिसका प्रकाशन 1271 हिजरी/1854-55 ई० में अलवी प्रेस लखनऊ में हुआ था।

  1. रामायण-

रामायण को आदिकाव्य भी कहा जाता है। यह महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित है। इसमें सात अध्याय हैं जो कांडो के नाम से अभिहित हैं। 24000 श्लोकों में अनुष्टुम्  छन्द में  निबद्ध यह अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य है।

क) रामायण की अत्यंत महत्वपूर्ण पांडुलिपि  रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में उपलब्ध है। इस पांडुलिपि को सुमेरचंद ने मुगल सम्राट फर्रूखसियर के शासनकाल 1128 हिजरी/ 1715-16 ईसवीं में फारसी अनुवाद किया था। पांडुलिपि की महत्ता का कारण इसमें उपलब्ध रंगीन चित्र हैं जिनकी संख्या 258 है जो किसी अन्य लिखित रामायण में इतनी संख्या में नहीं है।

ख)  पांडुलिपि संख्या – 4258 क

मसीह पानीपती की दास्ताने रामो-सीता के नाम से पांडुलिपि उपलब्ध है जिसका अनुवाद जहाँगीर के काल में हुआ था। इसके आरम्भ में मुहम्मद साहब की नआत लिखी है।

7- जातक-पारिजात –

यह ज्योतिष विद्या का ग्रंथ है। ज्योतिष में संहिता, होरा और सिद्धान्त यह तीन प्रधान विषय हैं। इनमें जातक-पारिजात होरा के अंतर्गत आता है। यह ग्रंथ 1347 शक अर्थात 1472 विक्रम में वैद्यनाथ दीक्षित द्वारा रचा गया।

क)  पाण्डुलिपि संख्या – 1650

जातक-पारिजात का फ़ारसी अनुवाद ‘ तर्जुमा बरखजातक ‘ नाम से हुआ था। कृपानाथ बलदारी ने इसका अनुवाद किया। इस अनुवाद कार्य को शाहआलम के शासन काल (1186 हिजरी/1772-73 ई०) में सम्पन्न किया गया।

ख)   पाण्डुलिपि संख्या – 1252

मिर्ज़ा रौशन ज़मीर ने ‘ तर्जुमा पारजातक ‘ के नाम से अनुवाद किया।

 

 

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