गाजीपुर। माह ए रमजान पवित्र महीना के साथ बरकत और दुआ का महीना है। माह ए रमजान का पाक महीना हमदर्दी और मदद का होता है। इसमें मुसलमान पूरी तरह से धर्म और ईमानदारी के रास्ते पर चलाना सीखते हैं। और अपने गुनाहों से तौबा करते हैं। अल्लाह के नेक रास्ते पर चलने की दुआ करते हैं। कौम के लिए यह महीना खास होता है। इस्लामी कलैंडर के मुताबिक सातवें महीने का नाम रमजान का होता है। पूरे महीने लोग रोजा रखते हैं। रात को तराबी की नमाज अता करते है। और कुरान शरीफ पढ़ते हैं। अगर रोजेदार सोता भी है, तो उसे इबादत में दर्ज किया जाता है। बीबी-बच्चों व परिवार पर खर्च किया जाता है, तो उसे दान में शामिल माना जाता है। अल्लाह ताला इस खर्च का 70 गुना या इससे ज्यादा लौटाकर देता है। रोजा रखने के दौरान सहरी व इफ्तार के समय अल्लाह से मांगी गई दुआ कबुल होती है। मोहम्मद ताबिश मंसूरी ने बताया कि रोजा रखना अल्लाह के यहां दर्ज किया जाता है। कयामत के दिन अल्लाह ताला जब हिसाब-किताब करता है, तो रोजेदार को उसके रोजो के नेक कर्माें की वजह से जन्नत नसीब होती है। रमजान के महीने में रोजेदार को इफ्तार के वक्त खाना खिलाने वाला भी उतने ही पुण्य का भागी होता है। इसके बदले में जन्नत नसीब होती है। अगर कोई अपने नौकरों या गुलामों का बोझ कम करता है तो अल्लाह ताला उसका बोझ हल्का कर देता है। उन्होंने बताया की कयामत के दिन भी ऐसे लोगों की सिफारिश करता है। रोजा जहन्नुम में मुसीबतों के सामने ढाल बनता है। लेकिन रोजा तोड़ने से बड़ा गुनाह नही होता, लेकिन उसे 60 रोजे का जुर्माना होता है। जो रोजा खत्म होने के बाद रखने होते हैं। या 60 गरीबों को दो वक्त का खाना खिलाना पड़ता है। रोजा एक ऐसी इबादत है।
Home / ग़ाज़ीपुर / रमजान महीने में मुसलमान धर्म और ईमानदारी के मार्ग पर चलना सीखते है, करते है गुनाहो से तौबा
[smartslider3 slider="4"]
Check Also
अल्पसंख्यकों और बेसहारों के हक के लिए नेताजी मुलायम सिंह ने हमेशा लड़ी लड़ाई- आमिर अली
गाजीपुर। जखनियां विधानसभा में सपा के जिला उपाध्यक्ष आमिर अली के नेतृत्व में साबिर अली …