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कृषि विज्ञान केंद्र पीजी कालेज में तकनीकी एवं व्यवहारिक ज्ञान में चयनित 25 किसान हुए सम्मानित

गाजीपुर। कृषि विज्ञान केन्द्र, पी0जी0 कालेज, गाजीपुर कृषकों एवं महिलाओं को व्यवसाय के रूप में स्थापित करने हेतु तकनीकी एवं व्यावहारिक ज्ञान में चयनित 25 किसानों को दिनांक 3 जनवरी से 7 जनवरी, 2023 तक प्रशिक्षण दिया गया, जिसके उपरान्त प्रशिक्षार्थियों को प्रमाण-पत्र का वितरण श्री अजीत कुमार सिंह, अपर महाधिवक्ता, उ0प्र0 सरकार एवं चेयरमैन कृषि विज्ञान केन्द्र, गाजीपुर द्वारा प्रदान किया गया। प्रशिक्षणार्थियां को प्रमाण-पत्र वितरण के दौरान उन्होंने कहा कि  बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो कम जमापूँजी  में अधिक मुनाफा देता है।  आज के युग में लोग बहुत से जानवरों का पालन करते हैं जिनका दाना-पानी और रहने की व्यवस्था उन्हें काफी महंगी पड़ती है। वहीं बकरी पालन एक सस्ता और टिकाऊ व्यवसाय है जिसमें पालन का खर्च कम होने के कारण आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा ले सकते हैं। बकरी पालकर बेचने का व्यवसाय आपके लिए बहुत ही फायदेमंद और उपयोगी साबित हो सकता है। इसीलिए बकरी को गरीबों की गाय कहा जाता है। आज जब एक ओर पशुओं के चारे.दाने एवं दवाई महँगी होने से पशुपालन आर्थिक दृष्टि से कम लाभकारी हो रहा है वहीं बकरी पालन कम लागत एवं सामान्य देख.रेख में गरीब किसानों एवं खेतिहर मजदूरों के जीविकोपार्जन का एक साधन बन रहा है। इतना ही नहीं इससे होने वाली आय समाज के आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। बकरी पालन स्वरोजगार का एक प्रबल साधन बन रहा है। भारत जैसे देशो में पशु पालन व्यवसाय सदियों से चला रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन तो आय का प्रमुख स्रोत रहा है। ऐसा ही एक बहुत ही लोकप्रिय है उन में से एक है बकरी पालन व्यवसाय। इसी क्रम में केन्द्र के सीनियर साइंटिस्ट एण्ड हेड/प्रभारी डॉ0 विनोद कुमार सिंह ने कहा कि बकरियों की कुल 102 प्रजातियाँ उपलब्ध है। जिसमें से 20 भारतवर्ष में है। अपने देश में पायी जाने वाली विभिन्न नस्लें मुख्य रूप से मांस उत्पादन हेतु उपयुक्त है। बकरी पालन व्यवसाय भी काफी प्रचलित हो रहा है। ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा मुनाफा देता है। इसमें जलवायु तथा आकार के अनुरूप बकरा बकरियों का चयन आवश्यक है।

बड़े आकार की नस्लें जमुनापारी, बील, झकराना,

मध्यम आकार की नस्लें,. सिरोही, मारवाडी, मैहसाना

छोटे आकार की नस्लें. बरबरी, ब्लैक बंगाल

जमुनापारी, सिरोही तथा बरबरी नस्ल की बकरियॉ मैदानी क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त हैं। अतः पशुपालकों द्वारा इन नस्लों का संवर्धन वृद्धि एवं व्यवसाय हेतु अधिकाधिक उपयोग किया जा सकता है। व्यवसाय को प्रारम्भ करते समय उच्च प्रजनन क्षमता युक्त वयस्क स्वस्थ्य बकरियों का ही चयन करना चाहिए।

आहार प्रबंधन

बकरी चरने वाला पशु है। स्थानीय स्तर पर विकसित चारागाह, पेड पौधा, कृषि फसलों की उपलब्धता अच्छे हरे चारे के रूप में आवश्यक हैं। बकरी को यदि 8 घण्टे चराने पर पाला जाता है तो उसके शारीरिक भार का 1 प्रतिशत पौष्टिक आहार के रूप में खाने हेतु दिया जाये। बकरी पालते समय यह ध्यान रखना चाहिए की बकरी का खान पान अच्छे से हो रहा है। उदाहरणार्थ 25 किग्राण् शारीरिक भार पर 250 ग्राम पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है।

बकरियों के आहार के मुख्य स्रोत निम्न हैं

अनाज वाली फसलों से प्राप्त चारे।

दलहनी फसलों से प्राप्त चारे।

पेड पौधों की फलियॉ व पत्तियाँ।

विभिन्न प्रकार की घास व झाडियाँ।

दाने व पशु आहार।

संसाधनों की उपलब्धता के अनुसार आहार व चुगान बकरियों को बांध कर भी उपलब्ध कराया जा सकता है। चारागाह की कमी हो जाने की वजह से आवास में रखकर पालने वाली पद्धति अधिक लाभप्रद होती जा रही है। अच्छे आवास हेतु 12 से 15 वर्ग फीट स्थान प्रति पशु आवश्यक है। आवास में हवा व प्रकाश की व्यवस्था होनी चाहिए। आवास स्थानीय उपलब्ध संसाधनों में सस्ता निर्मित होना चाहिए। बांध कर पालने वाली पद्धति में प्रति पशु 1 . 2 किग्राण् भूसा या 2ण्5 किग्राण् हरा चाराध्पत्तियाँध्हेध् साईलेज तथा 500 ग्राम से 1 किग्रा, संकेन्द्रित आहार शारीरिक आकार के अनुसार दिया जाना चाहिए।

प्रजनन

मादा 10 . 15 माह की आयु में प्रजनन योग्य हो जाती है। गर्मी के लक्षण में बकरी पूँछ को बार . बार हिलाती है तथा योनि से सफेद स्राव आता है। उस समय इसे नर बकरा के सम्पर्क में लाकर संसर्ग कराना चाहिए। बकरी 150 . 155 दिन में बच्चा देती है तथा 60 . 90 दिन में गर्मी में आने पर पुनः गर्भित कराना उचित होता है। नव उत्पन्न शिशु की उचित देखभाल करनी चाहिएए जिससे कि वह स्वस्थ्य रहे। बच्चों को खीस ;चीकाद्ध व दुग्ध पान दिन में चार बार कराना उचित होता है। दुग्ध का सेवन 6 . 8 सप्ताह तक कराना चाहिए। 3 . 9 माह की आयु तक वयस्कता प्राप्त करने हेतु अच्छी आहार व्यवस्था तथा रोग प्रबन्धन करना चाहिए।

स्वास्थ्य प्रबन्धन

बकरी के बच्चों में डायरियाए न्यूमोनियाए इंटेराइटिस से बचाव हेतु उचित देखभाल करनी चाहिए। वयस्कों में परजीवी रोगों के विरुद्ध नियमित कृमिनाशक ;पटारद्ध की दवा पिलानी चाहिए। संक्रामक रोग गलघोटूए इंटरोटाक्सीमियाए मुंहपका खुरपका तथा पीण् पीण् आरण् रोगों के विरुद्ध समय.समय पर टीकाकरण कराना आवश्यक होता है। प्रशिक्षण के दौरान केन्द्र के डॉ0 डी0के0 सिंह, डॉ0 ओमकार सिंह, आशीष कुमार वाजेपयी, मनोज कुमार मिश्रा, आशुतोष सिंह, डॉ0 पी0के0 सिंह, सुनील कुमार, कपिलदेव शर्मा इत्यादि उपस्थित थे।

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