गाजीपुर। आकाश में व्याप्त अंधकार का हरण करने केलिए सूर्य और चंद्र अपनी आभा बिखेरते हैं और समाज में व्याप्त कुरीतियों के तमस का अंत करने के लिए संत रविदासजी महाराज जैसे महापुरुषों का अवतरण होता है। जमानियां नगर कस्बा स्थित पक्का घाट के बगल में सन्त रविदास के मंदिर में महिला पुरुष सहित सैकड़ों भक्त गुरुवार को पहुंचे। और तरही को हर्षोउल्लास के साथ मनाया। मनोरंज के लिये पक्का घाट पर लोकगीत बिरहा का आयोजन किया गया। बताया जा रहा है। कि अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने के लिए और जन-पीड़ा की अमावस्या को तिरोहित करने के लिए ही संवत् 1433 की माघी पूर्णिमा को ज्ञान, तप और वैराग्य की शाश्वत भूमि काशी में संत रविदासजी के रूप में एक महान दैवीय शक्ति ने शरीर धारण किया था। जिन्होंने सद्भाव से रहने, सभी प्रकार के भेद का विनाश करने, सबके भले की शिक्षा देने और सामाजिक समरसता के दिव्य नाद का उद्घोष करने का महान कार्य किया। यद्यपि वे सुसंपन्न् चर्म-शिल्पी परिवार में अवतरित हुए थे। लेकिन महात्मा कबीर की प्रेरणा से स्वामी रामानंदजी महाराज को अपना गुरु बनाकर, उन्होंने दिव्य आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। बसपा विधान सभा के पूर्व विधायक प्रत्याशी हरदिल आजिज परवेज खान ने बताया कि संत समागम, हरि कथा, तुलसी दुर्लभ दोय के अनुरूप बाल्यकाल से ही संत रविदास जी साधु-संतों की दुर्लभ संगति का अमृत पान करते रहे। संत सेवा के साथ-साथ दीन-दुखियों, गरीबों और असहायों की सेवा में उन्होंने अद्भुत आनंद प्राप्त किया। और मधुर व्यवहार तथा समयबद्ध जीवन की अनुशासित प्रवृत्ति के कारण साधु-संतों का आशीर्वाद भी प्राप्त किया। उनका अवतरण ऐसे समय में हुआ था, जब समाज में असमानता की भावना, जाति, पंथ और संप्रदाय की जटिल परिस्थितियां थीं। विधर्मियों के आक्रमण का समय था। और भारतीय परंपराओं पर लगातार कुठाराघात किया जा रहा था। ऐसे समय में उन्होंने अपने वचनों से विश्व एकता और समरसता पर विशेष बल दिया। उन्होंने कहा कि सगुण भक्ति की आराधिका मीराबाई ने भी आप को अपना गुरु स्वीकार किया था। यह भी मान्यता है कि जब मीराबाई के पति की मृत्यु हुई तो संत रविदास जी ने ही मीराबाई को सती होने से रोका था। इससे पता चलता है कि भारत में सती प्रथा बंद करने की परंपरा का प्रारंभ संत रविदास ने ही किया था। खान ने बताया कि संत रविदास ने अपनी आत्मा की आवाज को कभी भी धन या प्रसिद्धि का दास नहीं बनने दिया। उन्होंने पुरुषार्थ के स्थान पर कभी भी अकर्मण्यता को स्वीकार नहीं किया। मन की पवित्रता उनके लिए मानव जीवन का सच्चा जीवन लक्ष्य थी, इसलिए ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ जैसे सुविचार उन्होंने क्रियान्वित करके भी दिखाए। उन्होंने समस्त मानव समाज को मानवता और कर्मत्व की शिक्षा दी। वे चर्म-शिल्पी थे। परन्तु जीवन का मर्म जानते थे और इस मर्म ज्ञान के माध्यम से ही उन्होंने समाज को जागृत करने तथा नई दिशा देने का प्रयास किया। इस अवसर सन्त रविदास भक्तों के साथ बसपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं सहित रहमतुल्लाह उर्फ बाबू भाई शामिल रहे।
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