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मुसलमानों के लिए माह ए रमजान एक पवित्र महीना है- मोहम्मद आसिफ

गाजीपुर। माह ए रमजान का पवित्र महीना शुरू हो गया। इसके साथ ही रात मस्जिदों में तराबीह भी शुरू होने के बाद कई मस्जिदों में तरावीह की नमाज खत्म हो गई। इधर रमजान को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों में तैयारियां शुरू कर दी गयी है। और ईद का त्योहार मनाने के पीछे कोई वजह होती है। मोहम्मद आसिफ ने बताया की माह ए रमजान के पवित्र पर्व इस्लाम में माह ए रमजान के महीने को सबसे पाक महीना माना जाता है। माह ए रमजान के महीने में कुरान नाजिल हुआ था। माना जाता है कि माह ए रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। और अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वालो की दुआ कूबुल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है। मुसलमानों के लिए माह ए रमजान महीने की अहमियत इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इन्हीं दिनों पैगम्बर हजरत मोहम्मद साहब के जरिए अल्लाह की अहम किताब ‘कुरान शरीफ’ (नाजिल) जमीन पर उतरी थी। इसलिए मुसलमान ज्यादातर वक्त इबादत-तिलावत में गुजारते हैं। मुसलमान माह ए रमजान के महीने में गरीबों और जरूरतमंद लोगों को दान देते हैं। उन्होंने बताया की रोजा रखने के लिए सवेरे उठकर खाया जाता है। इसे सेहरी कहते हैं। सेहरी के बाद से सूरज ढलने तक भूखे-प्यासे रहते हैं। सूरज ढलने से पहले कुछ खाने या पीने से रोजा टूट जाता है। रोजे के दौरान खाने-पीने के साथ गुस्सा करने और किसी का बुरा चाहने की भी मनाही है। आसिफ ने कहा कि शाम को सूरज ढलने पर आमतौर पर खजूर खाकर या पानी पीकर रोजा खोलते हैं। रोजा खोलने को इफ्तार कहते हैं। इस्लाम धर्म के धार्मिक मौलानाओं की माने तो इफ्तार के वक्त सच्चे मन से जो दुआ मांगी जाती है। वो कूबुल होती है। और एक बड़ी जनसंख्या को पतन के इस गर्त में गिरने से बचाने का सर्वोत्तम साधन तक़वा व रोजा है। यह बातें रोजेदार मोहम्मद आसिफ ने कही है। उन्होंने कहा कि रोजे से आदमी का आत्मिक और चारित्रिक उत्थान होता है। रोजा से एक सुंदर सुव्यवस्थित और चरित्रवान समाज का निर्माण होता है। उन्होंने कहा कि बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफिरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोजे से छूट है। जो लोग रोजा नहीं रखते उन्हें रोजेदार के सामने खाने से मनाही है। लेकिन कोई बिना कोई ठोस वजह से रोजा नहीं रखते हैं। तो अल्लाह उन्हें मुआफ़ नहीं करेगा। यह भी कहा कि ईद के चांद के साथ रमजान का अंत होता है। रमजान की खुशी में ईद मनाई जाती है। ईद का अर्थ ही ‘खुशी का दिन’ है। मुसलमानों के लिए ईद-उल-फित्र त्योहार अलग ही खुशी लेकर आता है।

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